Crystal-Field-Splitting 1.8 Useful Tricks.

Crystal-Field-Splitting 1.8 Useful Tricks.
Crystal-Field-Splitting

Crystal-Field-Splitting 1.8 Useful Tricks.यहाँ पर बीएससी second इयर जो कुछ दिनों में होने वाला हैं उसके इम्पोर्टेन्ट क्वेश्चन मिलेंगे |इस ब्लॉग बीएससी second year के अकार्बनिक रसायन यानि सेकंड पेपर का II यूनिट का प्रश्न का उत्तर मिलेगा|

Crystal-Field-Splitting 1.8 Useful Tricks

Crystal-Field-Splitting ऊर्जा-स्थिर विद्युत् क्षेत्र में धातु आयन के d-कक्षक, लिगैण्ड (बिन्दु आवेश) के प्रभाव से बिखर जाते हैं और उनकी ऊर्जा में परिवर्तन हो जाता है। यह बिखराव विस्फुटन कहलाता है तथा ऊर्जा में परिवर्तन विस्फुटन ऊर्जा कहलाती है। इस प्रक्रिया में विभिन्न लिगैण्डों के प्रभाव से विभिन्न तरंगदैर्ध्य का प्रकाश अवशोषण होता है, जो स्पेक्ट्रम द्वारा ज्ञात होता है।

धातु आयन को यदि ऋणात्मक आवेश वाले गोलीय क्षेत्र द्वारा घेर दिया जाए तो प्रतिकर्षण के कारण सभी कक्षकों की ऊर्जा समान रूप से बढ़ जायेगी, किन्तु आवेश क्षेत्र यदि लिगैण्डों द्वारा है, जो संख्या में 4 या 6 (उप- सहसंयोजन संख्या) होते हैं, तो यह प्रभाव असममित हो जाता है। d-कक्षकों का त्रिविम विन्यास के कारण उनमें ऊर्जा परिवर्तन भिन्न-भिन्न होता है। 2. कक्षक (तीन) और कक्षक (दो) इस प्रकार अलग-अलग ऊर्जा क्षेत्र में आ जाते हैं।

Crystal-Field-Splitting 1.8 Useful Tricks

यह विस्फुटन हुआ । इनका यह विस्फुटन प्रमुखतः लिगैण्ड की प्रकृति पर निर्भर होता है। किसी लिगैण्ड द्वारा विस्फुटन अधिक और किसी अन्य लिगैण्ड द्वारा विस्फुटन कम होता है। लिगैण्ड द्वारा विस्फुटन तीव्रता स्पेक्ट्रो रसायन श्रेणी से समझी जा सकती है। अष्टफलकीय यौगिकों में • कक्षकों की ऊर्जा कम तथा कक्षकों की ऊर्जा अधिक होती है। यह ध्यान रहे कि इस ऊर्जा परिवर्तन का गणितीय योग शून्य होता है, अर्थात् 12 कक्षकों (तीन कक्षक, छ: इलेक्ट्रॉन) की ऊर्जा में कुल कमी, ४ कक्षकों (दो कक्षक, चार इलेक्ट्रॉन) की ऊर्जा में कुल वृद्धि के बराबर होती है।

Crystal-Field-Splitting 1.8 Useful Tricks

Crystal-Field-Splitting ऊर्जा को प्रभावित करने वाले कारक-

  1. d- इलेक्ट्रॉनों की संख्या-समान आवेश वाले धनायनों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न हो तो क्रिस्टल क्षेत्र विस्फुटन ऊर्जा 4 का मान इलेक्ट्रॉन संख्या बढ़ने पर घटता है। Co2+ आयन में सात d-इलेक्ट्रॉन हैं और Ni2+ आयन में आठ -इलेक्ट्रॉन हैं। इनके हेक्सा ऐक्वो आयन की 4. ऊर्जा क्रमश: 9300 सेमी -‘ तथा 8500 सेमी – पायी गई है।
  2. धनायन पर आवेश-एक ही संक्रमण श्रेणी के धनायनों में उच्च ऑक्सीकरण संख्या होने पर उसका 4 मान अधिक होता है। उदाहरण- ऐक्वो (H2O) उप-सहसंयोजक यौगिको में 4 का मान Cr (III) में 17,400 सेमी – 1, Fe (III) में 13,700 सेमी – 1, Fe (II) में 10,400 सेमी – 1 तथा Mn (II) में 7,800 सेमी -1 है। इसका कारण यह है कि अधिक आवेश युक्त केन्द्रीय धनायन लिगैण्ड को अधिक ध्रुवित करेगा । इस कारण लिगैण्ड धातु आयन के अधिक निकट आ जायेगा
  3. लिगैण्ड की प्रबलता – स्पेक्ट्रो रसायन श्रेणी (Spectro chemical series ) — केन्द्रीय धातु आयन के d-कक्षकों को विभिन्न लिगैण्ड विभिन्न प्रमाण में विस्फुटित करते हैं। केन्द्रीय धातु आयन के d-कक्षकों का अधिक विस्फुटन करने वाले लिगैण्ड प्रबल लिगैण्ड तथा अपेक्षाकृत कम विस्फुटन करने वाले लिगैण्ड दुर्बल लिगैण्ड कहे जाते हैं। CN- आयन Δ0. का अधिक मान देने से प्रबल लिगैण्ड तथा CI-आयन 4. का कम मान देने के कारण दुर्बल लिगैण्ड कहे जाते हैं।लिगैण्डों को उनकी विस्फुटन क्षमता के क्रम में रखे जाने पर यह श्रेणी स्पेक्ट्रो रसायन श्रेणी कहलाती है। कुछ लिगैण्डों का उनकी बढ़ती हुई विस्फुटन ऊर्जा Δ0. (क्षमता) के अनुसार क्रम है-I® < Br® < CI® < F® < OH® < C2O2 <H2O < gly ~ EDTA –< py ~ NH3 < en < NO‡ < CN < Co उदाहरण – Co(III) यौगिक में लिगैण्डों का 4. मान CN = 34,000, NH, = 23,000 सेमी 1एवं H2O = 18,600 सेमी तथा Cr(III) यौगिक में यह CN = 26,300 सेमी – 1, NH3 = 21,600 एवं H20 = 17,400 सेमी होता है।

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