Thermodynamics 2023 Right Now

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Thermodynamics

Thermodynamics 2023 Right Now.रासायनिक तथा भौतिक प्रक्रमों (Chemical And Physical Processes) का अध्ययन प्रायः दो विभिन्न विधियों द्वारा या जाता है। पहली विधि में प्रक्रम का अध्ययन तन्त्र के परमाणुओं व अणुओं के आधार पर किया जाता है अर्थात गतिक दान्त (Kinetic Theory) के आधार पर किया जाता है जबकि दूसरी विधि में प्रकम का अध्ययन ऊर्जा परिवर्तनो के आधार किया जा सकता है।

द्वितीय प्रकार की प्रणाली (Approach) ऊष्मागतिकी (Thermodynamics) कहलाती है जो उन यानिक तथा भौतिक प्रक्रमों से सम्बन्धित होती है जिनमें ऊर्जा एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती है। यह विज्ञान ऊष्मा कार्य में परिवर्तन तथा कार्य का ऊष्मा में परिवर्तन भी नियंत्रित करता है।

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(ENERGY)

“वह गुण जो कार्य द्वारा उत्पन्न किया जा सके या जिसको कार्य में परिवर्तित किया जा सके, ऊर्जा कहलाता है” “The property which can be produced from or converted into work is called Energy”

ऊर्जा का परिमाण दो कारकों (Factors) के गुणनफल (Product) के रूप में प्राप्त किया जाता है: धारिता कारक (Capacity or) तथा तीव्रता कारक (Intensity Factor ) तीव्रता कारक (Intensity Factor), बल या प्रतिरोध (Resistance) का है। जब कोई वस्तु (Body) कार्य करती है या ऊर्जा को प्रसारित (Expand) करती है तो वह सीमा (Extent) जहाँ तक को समाप्त किया जा सकता है, धारिता कारक (Capacity Facto) कहलाती है ।

ऊर्जा के विभिन्न रूप हो सकते हैं जैसे,

  • (अ) गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) – गति के कारण उपस्थित तन्त्र की ऊर्जा गतिज ऊर्जा कहलाती है।
  • (ब) स्थितिज (Potential Energy) – स्थिति के कारण उपस्थित तन्त्र की ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा कहलाती है। अर्थात दूसरी वस्तुओं की में किसी वस्तु की संरचना या अन्य वस्तुओं की तुलना में उसके विन्यास के कारण उपस्थित ऊर्जा स्थितिजे ऊर्जा कहलाती
  • (स) वैद्युत ऊर्जा (Electrical Energy) – इलेक्ट्रॉनों या आयनों के चालन के कारण उपस्थित ऊर्जा वैद्युत ऊर्जा कहलाती
  • (द) विकिरण ऊर्जा (Radiant Energy) – दृश्य प्रकाश (Visible Light), विकिरण तथा ऊष्मा में उपस्थित ऊर्जा विकिरण कहलाती है।
  • (इ) रासायनिक ऊर्जा (Chemical Energy) – वह ऊर्जा जो सभी पदार्थों में स्थित होती है या वह ऊर्जा जो या पदार्थों के रूपान्तरण (Transformation) के समय होती है, रासायनिक ऊर्जा कहलाती है।
  • (3) द्रव्य ऊर्जा (Mass =gy) –
  • वह ऊर्जा जो द्रव्य के ऊर्जा में परिवर्तन के कारण होती है तथा जिसको समीकरणम = mc2 द्वारा ज्ञात किया जा है, द्रव्य ऊर्जा कहलती है।
  • (ऊ) नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) – नाभिकीय रूपान्तरण (Nuclear Transfor- Ton) के समय उत्सर्जित ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा कहलाती है।

ऊर्जा के उपरोक्त सभी रूप, ऊष्मा में परविर्तित हो सकते है तथा ये एक दूसरे में भी परिवर्तित हो सकते हैं। उष्मागतिकी emodynamics) एक यथार्थ गणितीय निगमनात्मक विज्ञान है जो मुख्यतः ऊष्मागतिकी के प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय नियमों आधारित है।

ये नियम, ऊर्जा के साथ एक लम्बे अनुभव से व्युत्पन्न (Derive) किये गये हैं। रासायनिक ऊष्मागतिकी emical Thermodynamics) ऊष्मागतिकी की वह शाखा है जिसमें केवल रासायनिक ऊर्जा (Chemical Energy) वाले का अध्ययन होता है ।

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ऊर्जा के मात्रक (Units of Energy)

C.G.S. में यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy) का मात्रक अर्ग (Erg) होता है। 1 डाइन (Dyne) प्रतिरोध को 1 दूरी तक ले जाने में किया गया कार्य अर्ग (Erg) कहलाता है ।

C.G.S में वैद्युत ऊर्जा (Electrical Energy) का मात्रक Joule) = 10′ Ergs होता है। C.G.S में ऊष्मीय ऊर्जा Thermal Energy) का मात्रक कैलोरी (Calorie) (1 Joule .2383 Calories) होता है ।

SI तन्त्र में ऊर्जा का मात्रक जूल (Joule) है। इकाई यांत्रिक कार्य (Unit Mechanical k) तथा ऊष्मा इकाई (Thermal Unit) के बीच का सम्बन्ध ऊष्मा का यांत्रिक तुल्यांक (Mechanical Equivalent of 1) कहलाता है।

संख्यात्मक रूप से इसका म 4.185 × 1 ô Ergs = 4.185 Joules होता है। अतः 5 x 10′ Ergs = 4.185 Joules यांत्रिक ऊर्जा के व्यय होने पर, 1 कैलोरी ऊष्मा उत्पन्न होती है ।

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अर्थात 1 Calorie Joule > 1 Erg ! जब कोई गैस दाब के विरुद्ध प्रसारित (Expanded) की जाती है तो किया गया कार्य दाब (तीव्रता -) तथा आयतन परिवर्तन (धारिता कारक) के गुणनफल द्वारा प्राप्त किया जाता है।

यदि दाब का मात्रक dynes/sq.cm आयतन का मात्रक c.c.(Cubic Centimetre) है तो इनके गुणनफल का मात्रक अर्ग (Erg) होगा जो सरलता से कैलोरी orie) में परिवर्तित किया जा सकता है ।

इसी प्रकार ऊष्मीय ऊर्जा (Thermal Energy), ताप (तीव्रता कारक) तथा तन्त्र उष्मीय क्षमता (धारिता कारक) के गुणनफल द्वारा ज्ञात की जाती है। इन दोनों के गुणनफल को (Calorie) में प्रदिर्शत किया है जिसको (Erg) या (Joule) में भी परिवर्तित किया जा सकता है। इसी की भाँति वैद्युत ऊर्जा (Electrical Energy),

Intensity Factor) तथा प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा (Coulombs, Capacity Factor) के गुणनफल द्वारा ज्ञात की जा सकती है। Volt तथा Coulombs के गुणनफल को (Joule) कहते हैं ।

ऊष्मागतिकी का अध्ययन (STUDY OF THERMODYNAMICS)

ऊष्मागतिकी का अध्ययन हम निम्न प्रकार से कर सकते हैं—

(1) चक्रीय प्रकमों (Cyclic Processes) द्वारा जिनमें जमा होता है।

(2) आन्तरिक ऊर्जा (Internal Energy ), पूर्ण ऊप्पा (Enthalpy), ऐन्ट्रापी, (Entropy), मुक्त ऊर्जा (Free-Energy) (Heat), यांत्रिक कार्य (Mechanical Work), वैद्युत कार्य (Electrical work) आदि का विनिमय (Exchange) सीधे हो आदि ऊष्मागतिकीय फलनों (Thermodynamic Functions) द्वारा ऊष्मागतिकी, तन्त्र की प्रारम्पिक (Initial) तथा अि (Final) अवस्थाओं से सम्बन्धित होती है।

यह इन अवस्थाओं को लाने वाले प्रक्रमों पर निर्भर नहीं करती है तथा यह प्रक्रमों दरों से भी सम्बन्धित नहीं होती है। इसलिये ऊष्मागतिकी में हुऐ किसी भी रूपान्तरण में समय कारक (Time Factor or Time Element) मान्य नहीं होता है ।

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तन्त्र (SYSTEM)

“सम्पूर्ण बह्यण्ड (Universe) का वह भाग जो विभिन्न परिवर्तकों (Variables) जैसे ताप, दाब आदि द्वारा वस्तुओं (Con- tents) पर प्रभाव के अध्ययन हेतू वास्तविक या काल्पनिक सीमाओं द्वारा शेष ब्रह्मण्ड अर्थात परिवेश (Surroundings) से पृथक रहता है, तन्त्र (System) कहलाते है”। तन्त्र (System) + परिवेश (Surroundings) = ब्रह्माण्ड (Univers)

तन्त्र उस अवस्था में समांग (Homogeneous) होता है जब वह सम्पूर्ण रूप से एक समान (Uniform) हाता है अर्थात समांग तन्त्र में केवल एक प्रावस्था (Phase) होती है। तन्त्र उस समय विषमांग (Heterogeneous) कहलाता है जब वह सम्पूर्ण रूप से एक समान नहीं होता है तथा उसमें एक से अधिक प्रावस्थाऐं होती है ।

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तन्त्र तथा उसके चारो ओर के परिवेश के बीच में होने वाली क्रियाओं के आधार पर तन्त्र तीन प्रकार का हो सकता है :

(अ) विकृत तन्त्र (Open System) – यदि कोई तन्त्र ऊर्जा तथा द्रव्य का विनिमय अपने चारो ओर के परिवेश के साथ कर सकता है तो वह विकृत तन्त्र (Open System) कहलाता है ।

(ब) संवृत तन्त्र (Closed System) – यदि कोई तन्त्र परिवेश के साथ ऊर्जा का विनिर्मय करने में सक्षम है किन्तु द्रव्यमान का विनिमय करने में सक्षम नहीं है तो वह तन्त्र संवृत तन्त्र (Closed System) कहलाता है।

(स) एकल तन्त्र (Isolated System) – यदि कोई तन्त्र परिवेश के साथ ऊर्जा तथा द्रव्य दोनों का ही विनिमय करने में असक्षम है तो वह एकल तन्त्र (Isolated System) कहलाता है ।

तन्त्र उस अवस्था में स्थूल तन्त्र (Macroscopic System) कहलाता है जब उसमें अधिक सँख्या में अणु, परमाणु या आयन उपस्थित होते हैं।

तन्त्र की अवस्था में हुये परिवर्तन को उस समय परिभाषित किया जा सकता है जब तन्त्र की प्रारम्भिक तथा अन्तिम अवस्थाऐं निर्दिष्ट (Specified) होती है।

“किसी अवस्था परिवर्तन के पथ का क्रम प्रारम्भिक अवस्था (Initial State), माध्यमिक अवस्थाऐं (Intermediate States) तथा अन्तिम अवस्थाओं (Final States) को क्रमबद्ध (जो कि तन्त्र द्वारा तय की जाती है) करके परिभाषित किया जा सकता है।”

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चक्रीय प्रक्रम (CYCLIC PROCESS) –

‘वह विधि जिसके द्वारा अवस्था में हुआ परिवर्तन प्रभावित होता है प्रक्रम कहलाती है।” यदि तन्त्र, जिसकी अवस्था में परिवर्तन हुआ हो, अपनी प्रारम्भिक स्थिति (Initial State) में आ जाता है तो चक्रीय रूपान्तरण (Cyclic Transformation) का पथ, चक्र (Cycle) कहलाता है तथा वह प्रक्रम जिसके द्वारा रूपान्तरण प्रभावित होता है, चक्रीय प्रक्रम कहलाता है।

तन्त्र की अवस्था (STATE OF SYSTEM) –

किसी तन्त्र को किसी अवस्था में रहने के लिये उसके गुणो के मानों (Values) को निश्चित होने चाहिये । ताप, दाब आयतन, संघटन, अपवर्तनांक, श्यानता आदि ऐसे अनेको स्थूल गुण (Macroscopic Properties) हैं जो तन्त्र से सम्बन्धित होते हैं, किन्तु पहले चार अर्थात ताप दाब, आयतन, संघटन मूल रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि किसी तन्त्र को पूर्णतः ऊषमागतिकीय रूप से परिभाषित करने के लिये ये परिवर्तन (Variables) पूर्ण रूप से सक्षम होते हैं।

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इन परिवर्तको (Variables) को ऊष्मागतिकीय गुण या अतंखण्डी अनुपात (Parameters) या अवस्था परिवर्तीय (State Variables) कहते हैं। उदाहरण के लिये, समांग तन्त्र में संघटन (Composition) स्थिर होता है तथा तन्त्र के ताप, दाब तथा आयतन, PV = RT के रूप में परस्पर सम्बन्धित होते हैं।

अत- अवस्था परिवर्तक (State Variable) वह होता है जिसका मान (Value) तन्त्र अवस्था के निर्दिष्ट होने पर निश्चित होता है उदाहरण के लिये, गैस समीकरण, PV = RT में, यदि इन चारों परिवर्तकों में से तीन परिवर्तक (P, V,T) ज्ञात हो तो शेष परिवर्तक ज्ञात किया जा सकता है।

क्योंकि गैस स्थिरांक (Gas Constant) ‘R’ का मान स्थिर होता है । सामान्यतः निर्दिष्ट होने वाले परिवर्तक, ताप व दाब होते हैं तथा इनको स्वतन्त्रत परिवर्तक (Independent Variables) कहते हैं।

तीसरा परिवर्तक अर्थात आयतन ताप व दाब पर निर्भर करता है अत: यह निर्भर परिवर्तक (Dependent Variable) कहलाता है।

तन्त्र के गुण (PROPERTIES OF SYSTEM)

ये दो प्रकार के होते हैं।

(अ) विस्तारात्मक गुण (Extensive Property ) – यह वह गुण है जिसका परिमाण (Magnitude), उपस्थित पदार्थ की मात्रा पर निर्भर करता है । उदाहरणार्थ कुल द्रव्यमान, कुल आयतन, कुल ऊर्जा, ऊष्मा, पूर्ण-ऊष्मा, मोल आदि ।

(ब) अविस्तारात्मक गुण (Intensive Property ) – यह वह गुण है जिसका मान, तन्त्र में उपस्थित पदार्थ पर निर्भर नहीं है। उदाहरणार्थ-दाब, रग, घनत्व, ताप विशिष्ट ऊष्मा, आयतन प्रतिमोल या मोलरता, ऊर्जा प्रतिमोल आदि ।

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ऊष्मागतिक साम्य (THERMODYNAMIC EQUILIBRIUM)

हम जानते हैं कि तन्त्र की अवस्था तन्त्र के परिवर्तकों (Variables) जैसे दाब, ताप आदि द्वारा निर्धारित की जाती है। जब में परिवर्तकों (Variables) में परिवर्तन होता है तो तन्त्र की अवस्था में भी परिवर्तन होना चाहिये ।

अतः इस प्रकार का अस्थायी (Unstable) होगा। अपनी ही अवस्था में छोड़े गये तन्त्र के परिवर्तकों में सम्पूर्ण तन्त्र में एक समान (Uniform) रहने की क्षमता होती है तुथा जब यह समानता परिवर्तकों के परिणाम में आ जाती है तो एक स्थायी स्थिति आ जाती है जिसे तन्त्र साम्य कहते है। पूर्ण साम्य को प्राप्त करने हेतु तीन विजिन परिस्थितियों को परिपूर्ण करता आवश्यक होता है।

(1) यांत्रिक साम्य:- तंत्र उस समय यांत्रिक साम्य में होता हैं जब तंत्र के विभिन्न भागों के मध्य या तन्त्र तथा उसके परिवेश के मध्य कोई असंतुलित बल (Unbalanced Force) उपस्थित नहीं होता है।

(2) उष्मीय साम्य :-तंत्र उस समय उष्मीय साम्य में होता हैं जब सम्पूर्ण तंत्र तथा उसके ओर का परिवेश का ताप एक समान होता है।

(3) रासायनिक साम्य :-तंत्र उस समय रासायनिक साम्य में होता हैं जब तंत्र का संघटनस्थायी तथा निश्चित होता है । अत: यांत्रिक साम्य का अर्थ है दाब की समानता, ऊष्मीय साम्य का अर्थ है ताप की समानता, तथा रासायनिक साम्य का अर्थ है रासायनिक संघटन की समानता ।

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तन्त्र बिना रासायनिक साम्य में रहे, यांत्रिक तथा ऊष्मीय साम्य में रह सकता है। उदाहरण के लिये, समान ताप तथा दाब पर H2 तथा I2 का मिश्रण उस समय तक धीरे-धीरे क्रिया करता रहता है। जब तक की रासायनिक साम्य स्थापित नहीं हो जाता है । इसी प्रकार से रासायनिक तथा यांत्रिक साम्य को प्राप्त करने हेतू तन्त्र अपने अन्दर ऊष्मीय परिवर्तनों को होने देता है ।

तन्त्र उस समय ऊष्मागातिक साम्य (Thermodynamic Equilibrium) में होता है जब वह उपरोक्त तीनो साम्य अवस्थाओं को सन्तुष्ट कर देता है। जब तन्त्र ऊष्मागतिक साम्य में होता है तो उसके गुणों के परिमाण निश्चित होते हैं।

प्रक्रमों के प्रकार (TYPES OF PROCESSES)

ऊष्मागतिकीय प्रक्रम् वह पथ (Path) या प्रचालन (Operation) जिसके द्वारा तन्त्र एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तित होता है। प्रक्रमों के चार महत्वपूर्ण प्रकार होते हैं—

(अ) रुद्धोष्प प्रक्रम (Adiabatic Process) – यदि प्रक्रम ऐसी परिस्थितियों में होता है कि तन्त्र तथा उसके चारो ओर के परिवेश में ऊष्मा का विनिमय (Exchange of Heat) नहीं हो पाता है तो प्रक्रम, रुद्धोष्प प्रक्रम (Adiabatic Process) कहलाता है ।

उदाहरण के लिये साइकिल की ट्यूब में अचानक हुआ प्रस्फोट (Burst) एक रुद्धोष्म प्रक्रम है। ऊष्माक्षेपी प्रक्रम (Exothermic Process) में, उत्सर्जित ऊष्मा तन्त्र में ही रहती है जिससे तन्त्र का ताप बढ़ जाता है जबकि ऊष्माशेषी प्रक्रम में, अवशोषित ऊष्मा तन्त्र द्वारा निकला दी जाती है जिससे तन्त्र का ताप कम हो जाता है ।

(ब) समतापी प्रक्रम ( Isothermal Process) – प्रक्रम उस समय समतापी अवस्था में होता है तब उसका ताप स्थिर होता है। जब किसी गैस को अचानक संपीडित किया जाता है तो कुछ ऊष्मा उत्सर्जित होती है किन्तु यदि संपीडन धीमा होता है तथा उत्सर्जित ऊष्मा को तुरन्त ही हटा दिया जाता है तो ताप स्थिर हो जाता है तथा परिवर्तन समतापी होता है।

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दूसरी ओर यदि गैस को अचानक प्रस्स्रित (Expanded) किया जाये तो गैस द्वारा कुछ कार्य होता है तथा कुछ ऊष्मा अचानक प्रसारित होती है। गैस द्वारा कुछ कार्य होता है तथा कुछ ऊष्मा अचानक प्रसरित हाती है।

गैस द्वारा कुछ कार्य होता है तथा ऊष्मा अवशोषित होती है। यदि अब कुछ ऊष्मा बाहर से प्रदान की जाये जिससे की ताप स्थिर रहे तो परिवर्तन समतापी (Isothermal) कहलाता है।

रुद्धोष्प प्रक्रम (Adiabatic Process) में ताप परवर्तित हो जाता है क्योंकि तन्त्र इस स्थिति में नहीं होता है वह परिवेश के साथ ऊष्मा का विनिमय कर सके जबकि समतापी प्रक्रम (Isothermal Process) में ताप स्थिर रहता है जिससे तन्त्र परिवेश के साथ ऊष्मा का विनिमय कर सके ।

(स) समदाबी प्रक्रम (Isobaric Process) –

यदि तन्त्र के अवस्था परिवर्तन के प्रत्येक पद् (Step) में तन्त्र का दाब स्थिर रहता है तो प्रक्रम समदाबी प्रक्रम ( Isobaric Process) कहलाता है।

मान लो किसी सिलेण्डर में H, तथा O2 का मिश्रण 2 : अनुपात में है तथा सिलेम्डर में भार रहित तथा घर्षण रहित (Fricationless) पिस्टन लगा हुआ है।

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जब इस मिश्रण में से विद्युत विसर्जन (Electric Discharge) गुजारी जाती है तो तन्त्र का आयतन घट जाता है । पिस्टन को नीचे की ओर ले जाने से तन्त्र का दाब स्थिर किया जाता है। 2H2 + O2 → 2H2O

(द) समआयतनिक प्रक्रम (Isochoric Process) – यदि प्रक्रम के प्रत्येक पद में तन्त्र का आयतन स्थिर रहता है तो प्रक्रम समआयतनिक प्रक्रम (Isochoric Process) कहलाता है ।

N2O4 (g) → 2NO2 (g)

मान लो कि उपरोक्त अभिक्रिया एक ऐसे सिलेण्डर में हो रही है जिसमें भार रहित तथा घर्षण रहित पिस्टन लगा हुआ है। जब इसमें वियोजन होगा तो तन्त्र का आयतन बढ़ जायेगा अतः आयतन को स्थिर रखने के लिये पिस्टन पर और अधिक भार रख कर आयतन को स्थिर करना पड़ेगा ।

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