Arrhenius theory 2023 Useful

Arrhenius theory 2023 Useful
Arrhenius theory

Arrhenius theory.सन 1887 में आरहिनियस ने विद्युत अपघटनी वियोजन (Electrolytic Dissociation) का एक विस्तृत सिद्धान्त प्रतिपादित Conductivity Data) के स्पष्ट वर्णन तथा तनु विलयनों में प्रेक्षित, विद्युत अपघट्यों के असामान्य व्यवहार (Abnormal Behaviour) किया। यह न केवल विद्युत अपघटन की सरल क्रियाविधि को प्रस्तुत करता है अपितु यह चालकता के विभिन्न आंकड़ा (Various के विषय में भी बताता है।

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आहिनियस का आयनन सिद्धान्त (ARRHENIUS THEORY OF IONISATION)

नवीन रूप में अर्थात आयनिक सिद्धान्त के रूप में इस सिद्धान्त की मुख्य अभिधारणाएँ निम्न हैं-

(अ) अम्लों, क्षारों तथा लवर्णों जैसे विद्युत अपघट्यों के अणुओं को जब जल में घोला जाता है तो वे दो प्रकार के आवेशित कार्यों विभाजित हो जाते हैं, जिनमें से एक पर धन आवेश होता है अर्थात एक धनायन (Cation) होता है तथा दूसरे पर समान ऋण आवेश होता है अर्थात दूसरा ऋणायन (Anion) होता है।

ये आवेशित कण आयन (lons) कहलाते हैं तथा यह प्रक्रम आयनन (lonisation) या विद्युत अपघटनी वियोजन (Electrolytic Dissociation) कहलाता है।

धनायन पर उपस्थित कुल आवेश, ऋणायन पर उपस्थित कुल आवेश के तुल्य तथा विपरीत होता है,इसलिये सम्पूर्ण विलयन विद्युत उदासीन (Electrically Neutral) होता है। X-किरण विवर्तन (X-Ray Diffraction) अध्ययन से हमें यह ज्ञात हुआ है कि ठोस लवण अणुओं के स्थान पर आयनों द्वारा निर्मित होते हैं।

अपने सबसे नवीन रूप में Arrhenius theory यह मानता है कि ठोस, विद्युत अपघट्य आवेशित आयनों का संयोजन होता है तथा ये आयन विद्युत स्थैतिक बलों द्वारा परस्पर बँधे हुऐ होते हैं।

जल में घोलने पर या गलित अवस्था में आयनों के मध्य उपस्थित ये बल टूट जाते हैं तथा आयन मुक्त अवस्था में घूमने लगते हैं।

A + B- ⇌ A+ + B-

(ब) जब विद्युत धारा को विद्युत अपघट्य के विलयन में से गुजारा जाता है तो धनआवेशित धनायन कैथोड (Cathode) की ओर गति करते हैं तथ ऋणाआवेशित ऋणायन ऐनोड (Anode) की और गति करते हैं।

जहाँ पर ये अपने आवेशों से मुक्त हो जाते हैं तथा सामान्य क्रियाफल (Normal Products) बनाते हैं। आयनों की यह गति विलयन में विद्युत धारा का निर्माण करती है।

(स) विलयन में उपस्थित आयन निरंतर रूप से संयोजित होकर अवियोजित अणु बनाते हैं जिससे आयनों व अवियोजित अणुओं के मध्य गतिक साम्य (Dynamic Equilibrium) स्थापित हो जाता है।

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A + B- ⇌ A+ + B-

रासायनिक साम्य का नियम लगाने पर

K =[A+] [B]/[AB]

जहाँ पर K आयनन स्थिरांक या वियोजन स्थिरांक है।

उदाहरण-

NH4OH (aq) NH4 (aq) + +OH(aq)

HCl (aq) ⇌H+ (aq) + Cl-(aq)

CH3COOH (aq) ⇌CH3COO- (aq) + H+ (aq)

(द) क्वथनांक के उन्नयन (Elevation of Boiling Point) में आयन, अनआवेशित विलेय के अणुओं की भाँति व्यवहार करते हैं । इसीप्रकार का व्यवहार से वाष्पदाब अवनमन तथा विलयन में परासरणदाब को स्थापित करने हेतु करते हैं।

अतः प्रत्येक अणु से दो आयनों को प्रदान करने वाले विद्युत अपघट्य पर उपस्थित प्रभाव, अनायनित अणु के प्रभाव से दोगुना होता है तथा तीन आयनों को प्रदान करने वाले विद्युत अपघट्य पर यह प्रभाव तीन गुना होता है।

(इ) विद्युत अपघट्यों के विलयनों के गुण आवश्यक रूप से एकल आयनों (Individual lons) के गुण होते हैं इसलिये विलयन में उपस्थित विद्युत अपघट्यों के मध्य हुयी रासायनिक अभिक्रियाऐं अणुओं के मध्य नहीं होती है बल्कि आयनों के मध्य होती है।

उदाहरणार्थ: क्लोराइड, CI- आयनों के गुणों द्वारा लक्षित होते हैं, क्षार, OH आयनों के गुणों द्वारा लक्षित होते हैं तथा अम्ल, H+ आयनों के गुणों द्वारा लक्षित होते हैं।

(फ) हम जानते हैं कि आयनों की गति ही विलयन में विद्युत धारा का निर्माण करती है। हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि विद्युत धारा आयनो को उत्पन्न नहीं करती हैं परन्तु,इसका केवल निर्देशी प्रभाव ही होता हैं।

ऐसा भी हो सकता हैं कि विद्युत अपघट्य पूर्ण रूप से आयनित न हो। उन अणुओं की कुल संख्या का प्रभाज्य (Fraction) जो विलयन में आयनों के रूप में रहते हैं, आयनन की दर (Degree of Ionsiation) या विद्युत अपघट्य के वियोजन की दर कहलाता है।

आयनन की दर=आयनों के रूप में उपस्थित अणुओं की संख्या/घुले हुऐ अणुओं की कुल संख्या

तनुता (Dilution) के साथ आयनन की दर भी बढ़ती है तथा अनंत तनुता पर यह इकाई (Unity) हो जाती है। इससे यह संकेत

मिलता है कि वियोजन पूर्ण हो चुका है।

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विभिन्न विद्युत अपघट्यों के आयनन की दर भिन्न होती है तथा निम्न कारकों पर निर्भर करती है-

(अ) विलेय की प्रकृति (Nature of Solute)-

म्लों, क्षारों तथा लवणों जैसे आयनिक यौगिक जलीय विलयन बहुत अधिक आयनित होते हैं या लगभग पूर्णरूप से आयनित हो जाते हैं तथा ये प्रबल विद्युत अपघट्य (Strong Electrolytes) कहलाते हैं।

दुर्बल अम्लों तथा क्षारों जैसे आंशिक आयनिक यौगिक (Partially Ionic Compounds) जलीय विलयन में दुर्बलता से आयनित होते हैं तथा दुर्बल विद्युत अपघट्य (Weak Electrolytes) कहलाते हैं ।

(ब) विलायक की प्रवृत्ति (Nature of Solvent) –

आयनन पर विलायक की प्रकृति का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। यह दो आयनों को बाँधने वाले बलों को तोड़ देता है तथा पृथक कर देता है। विलायक का यह प्रभाव उसके परावैद्युत स्थिरांक (Dielectric Constant) द्वारा मापा जाता है।

परावैद्युत स्थिरांक, विलायक की वह क्षमता है जिससे वह विलायक में उपस्थित विद्युत आवेशों के मध्य स्थित आकर्षण बलों को दुर्बल करता है। उच्च परावैद्युत-स्थिरांक वाले विलायक दुर्बलता से आयनित होते हैं।

जल का परावैद्यत स्थिरांक बहुत उच्च (लगभग 80) होता है, दूसरे विलायकों के विलयनों की अपेक्षा जलीय विलयन में विद्युत अपघट्यों की आयनन दर उच्च होती है ।

(स) अन्य विलेयों का प्रभाव (Effect of Other Solutes) –

अशुद्धता के रूप में अन्य आयनों की उपस्थिति भी आयनन की दर को प्रभावित करती है। अन्य विलेय में एक ही प्रकार के आयनों की उपस्थिति, दिये गये विलेय की आयनन की दर को कम करती है ।

(द) ताप (Temperature)—–

तापमान जितना उच्च होगा, आयनन उतना अधिक होगा क्योंकि उच्च ताप पर आणविक वेग बढ़ जाता है तथ वह आयनों के मध्य उपस्थित आकर्षण बल को दूर कर देता है तथा इसके परिणामस्वरूप आयनन अधिक हो जाता है

(इ) सान्द्रता (Concentration) –

आयनन की सीमा, विलयन की सान्द्रता के व्युत्क्रमानुपाती होती है। अतः आयनन की दर, तनुता के साथ बढ़ती है तथा अनन्त तनुता पर उसका मान इकाई हो जाता है तथा वियोजन पूर्ण हो जाता है।

तनु विलयन में विलेय के अणुओं तथा विलायक के अणुओं का अनुपात कम होता है तथा विलायक के अणुओं की अधिक सँख्या, विलेय के अधिक अणुओं को आयनो में पृथक कर देती है।

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आरहिनियस सिद्धान्त के पक्ष में कुछ प्रमाण (EVIDENCE IN FAVOUR OF ARRHENIUS THEORY)

(1) ओम का नियम (Ohm’s Law) –

विद्युत अपघट्य में से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा सर्वदा ओम के नियम (E/I=R) का पालन करती है । इससे यह संकेत मिलता है कि सम्पूर्ण विद्युत धारा विद्युत अपघट्य के प्रतिरोध को समाप्त करने में प्रयोग हो जाती है तथा इसका कोई भी भाग अणुओं को पृथक करने में प्रयोग नहीं होता है।

इसके अतिरिक्त थोड़े से ही विद्युतवाहक बल से विद्युत अपघटन का प्रक्रम हो सकता है। यह तभी सम्भव है जब विद्युत अपघटन से पूर्व ही आयन विलयन में उपस्थित हो ।

(2) ठोस लवणों में उपस्थित आयन (Ions Present in Soid Salts) –

X – किरण विर्वतन के अध्ययन से हमें यह ज्ञात हुआ है कि ठोस विद्युत अपघट्य अणुओं के स्थान पर आवेशित आयनों का संयोजन होता है जो कि विद्युत स्थैतिक बल रेखाओं से परस्पर बँधे होते हैं।

गलित अवस्था में या उपयुक्त विलायक में घोलने पर आयनों के मध्य उपस्थित बल रेखाऐं टूट जाती हैं तथा आयन मुक्त रूप से घूमने लगते हैं

A + B- ⇌ A+ + B- Na+ Cl-⇌Na+ + Cl-

विलयन का रंग (Colour of Solution) –

विलयन में विद्युत अपघट्यों के गुण उत्पन्न आयनों के गुण होते हैं । उदाहरणार्थ – कॉपर सल्फेट, Cu2+ आयनों की उपस्थिति के कारण ही नीले रंग का होता है कोबाल्ट क्लोराइड का गुलाबी रंग C2+ आयनों की उपस्थिति के कारण ही होता है।

इस प्रकार से हम अनेकों रंगीन लवणों की सूची बना सकते हैं । इस तरह के अधिकांश आयन संक्रमण तत्वों के होते हैं तथा इनकी बाह्य कक्षा अपूर्ण होती है ।

उदाहरण के लिये,

Cu2+ = 1sss22s22p63s23p63d9

Co2+ = 1s22s22p63s23p63d7

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जब ऐसे आयन संकरित कर्मकों (Complexing Agents) के साथ संकरित होते हैं तो परिवर्तित इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के कारण रंग भी परिवर्तित हो जाता है। कभी कभी रंग पूर्णतः लुप्त हो जाता है ।

उदाहरणार्थ, अपचयन में बैंगनी रंग का MnO4- रंगहीन Mn2+ में परिवर्तित हो जाता है। इसी तरह से जब Cu2+,CN-आयनो के साथ संकरित होता हैं तो गहीन Cu (CN)42-का निर्माण होता है।

जब पीले रंग के Fe3+ आयन CNS के साथ संकरित होते हैं तो लाल रंग का Fe (CNS)3- बनता है।

(4) आयनिक अभिक्रियाऐं –

गुणात्मक परिक्षण विश्लेषण (Qualitative Analysis) में हुए परीक्षण आयनों के परिक्षण होते है। एक मूलक, विलयन में अपना परिक्षण तब ही देता है जब विलयन में इसके आयन उपस्थित होते हैं।

उदाहरणार्थ, AgNO 3 के जलीय विलयन में Ag का परिक्षण विलयन में NaCl या HCl डालकर किया जा सकता है जिसके फलस्वरूप AgCI का सफेद अवक्षेप प्राप्त होता है।

किसी भी लवण का विलयन जिसमें CI- आयन उपस्थित होते हैं सर्वदा AgNO3 का विलयन डालने पर AgCl का अवक्षेप बनाता है।

AgNO3 Ag+ + NO3- NaCl ⇌Na+ + Cl- ; Ag+ + Cl- AgCl

यदि संकर आयन बनने के कारण सिल्वर, विलयन में आयनों के रूप में नहीं होती है जैसे कि सोडियम अर्जेन्टों साइनाइड NaAg (CN)2 में, तो सिल्वर आयन विलयन में नहीं होगा ।

NaAg(CN)2 Na+ + Ag(CN)2-

इसीप्रकार से K4Fe(CN) 6, Fe आयनों के लिये कोई परीक्षण नहीं देता है ।

K4Fe(CN)6 4K+ +Fe(CN)64

(5) प्रबल तथा दुर्बल विद्युत अपघट्य (Strong and Weak Electrolytes) –

आयनन की सीमा के आधार पर विद्युत अपघट्यों को प्रबल या दुर्बल विद्युत अपघट्य कहा जाता है। वे विद्युत अपघट्य जो विलयन में अधिक आयनित होते हैं अर्थात जिनकी आयनन की दर उच्च होती है प्रबल विद्युत अपघट्य कहलाते हैं।

उदाहरणार्थ, HCI, H2SO4, HNO3 जैसे प्रबल अम्ल, NaOH, KOH जैसे प्रबल क्षार तथा अधिकांश सभी लवण । वे विद्युत अपघट्य जो विलयन में कम आयनित होते हैं अर्थात जिनकी आयनन की दर कम होती है, दुर्बल विद्युत अपघटन कहलाते हैं।

उदाहरणार्थ, H2CO3, Al(OH) 3, BaSO4, CH3COOH, NH4OH, H3BO3 आदि

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(6) उदासीनीकरण की ऊष्मा (Heat of Neutralisation) –

प्रबल अम्ल के ग्राम तुल्याँक तथा प्रबल क्षार के ग्राम तुल्याँक की उदासीनीकरण की ऊष्मा सर्वदा स्थिर रहती है। इसका मान लगभग 13.7 k.cals होता है तथा वह अम्ल व क्षार के प्रकार पर निर्भर नहीं करता है।

इसका मुख्य कारण यह है कि वास्तव में उदासीनीकरण, अम्ल के H+ आयन तथा क्षार के OH- आयन के संयोजन से हुआ जल का निर्माण है। अतः उदासीनीकरण की ऊष्मा, H+ आयनों व OH- आयनों से बने जल की अभिक्रिया की ऊष्मा है जे सर्वदा समान रहती है तथा अम्ल व क्षार के प्रकार पर निर्भर नहीं करती है।

H+ + OH → H2O ; AH = – 13.7 k.cals

(7) अणु संख्य गुण धर्म (Colligative Properties) –

जलीय विलयनों में विद्युत अपघट्यों का असंगत व्यवहार, Arrhenius theory द्वारा समझाया जा सकता है। वाण्ट हॉफ ने यह प्रदर्शित किया कि विद्युत अपघट्यों के अणु संख्य गुण धर्म, अपअपघट्य की तुलना में अधिक होते हैं ।

उदाहरणार्थ, शक्कर, यूरिया आदि जैसे अनअपघट्यों का मोल अवनमन स्थिरांक 1.86 होता है जबि HCl, KCI,आदि जैसे विद्युत अपघट्यों का अधिक तनुता में यह मान लगभग 3.72 होता है। इसको स्पष्ट करने हेतु वाण्ट हॉफ ने नामक कारक प्रतिपादित किया जिसको वाण्ट हॉफ कारक कहते हैं ।

i=हिमांक का प्रेक्षित अवनमन/ हिमांक का गणना किया गया अवनमन=प्रेक्षित अणु संख्य गुण धर्म/ गणना किया गया अणु संख्य गुण धर्म

अणु संख्य गुण धर्म, दिये गये विलायक की मात्रा में विलेय के कणों की सँख्या पर निर्भर करते हैं।

यह स्पष्ट है कि KCI NaCl अपनी कम सान्द्रताओं में आणविक सान्द्रता की आवश्यकता से दोगुने प्रभाव को उत्पन्न करने का प्रयत्न करते हैं, & CaCl2 तीन गुने प्रभाव को उत्पन्न करने का प्रयत्न करता है ।

अत: KCI जो K+ तथा CI- आयनों को प्रदान कर सकता हैं,एकाकी अणु के लिये गणना किये गये अवनमन से हिमांक का दोगुना अवनमन उत्पन्न करेगा

Thermodynamics 2023 Right Now

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