पीयरसन नियम से आप क्या समझते हैं ? 2023 useful

पीयरसन नियम से आप क्या समझते हैं ? इस नियम की उपयोगिता बताइए।यह ब्लॉग बीएससी फाइनल इयर के सेकंड पेपर अकार्बनिक रसायन से सम्बंधित हैं|यह प्रश्न अकार्बनिक केमिस्ट्री की फर्स्ट यूनिट से लिया गया हैं|

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लुईस अम्ल-क्षारकों की क्रिया से संकुल या एडक्ट बनता है । इन संकुलों के स्थायित्व की भविष्यवाणी करने के लिए पीयरसन (1963) ने एक सामान्य नियम दिया, जिसे पीयरसन नियम या कठोर-मृदु अम्ल-क्षारक सिद्धान्त (HSAB Principle) के नाम से जाना जाता है। इसके अनुसार, “किसी अम्ल-क्षारक अभिक्रिया में कठोर अम्ल की प्राथमिकता कठोर क्षारक से तथा मृदु अम्ल की प्राथमिकता मृदु क्षारक से संयोग करने की होती है, इस प्रकार प्राप्त उत्पाद अधिक स्थायी होता है ।”

By Kumar Santosh

पीयरसन नियम से आप क्या समझते हैं ? इस नियम की उपयोगिता बताइए।

A(लुईस अम्ल)             +: B(लुईस क्षारक)  ——-à    A: B(संकुल या एडक्ट)

लुईस अम्ल पीयरसन सिद्धान्त (HSAB Principle) के अनुसार, संकुल A: B तब स्थायी होगा, जब A तथा B दोनों ही मृदु या कठोर स्पीशीज़ हों। यह संकुल सबसे कम स्थायी होगा यदि A तथा B में से एक कठोर तथा दूसरा मृदु हो ।

कठोरमृदु अम्लक्षारक सिद्धान्त की उपयोगितापीयरसन नियम

इस सिद्धान्त के कुछ प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं-

(1) संकुल यौगिकों का स्थायित्व (Stability of complex compounds) – इस सिद्धान्त के अनुसार, कठोर अम्लों की कठोर क्षारकों से तथा मृदु अम्लों की मृदु क्षारकों से क्रिया करने पर ही स्थायी संकुल यौगिक प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ – Agl2, एक स्थायी यौगिक है, क्योंकि यह मृदु-मृदु अन्तः क्रिया से बनता है, परन्तु AgF2 (मृदु अम्ल + कठोर क्षारक) बनता ही नहीं है।

Ag+( मृदु अम्ल)      +       21-( मृदु क्षारक) —>    [Agl2] (स्थायी संकुल)

Ag +( मृदु अम्ल)    +    2F( कठोर क्षारक)  —–> [AgF2]( अस्थायी संकुल)

इसी प्रकार CoF63 का स्थायित्व Col33से अधिक होता है।

Co3+ (कठोर अम्ल  ) + 6F-( कठोर क्षारक) → [CoF6]3-(स्थायी संकुल)

Co3+ (कठोर अम्ल  ) + 6I-( कठोर क्षारक) → [CoI6]3-(अस्थायी संकुल)

इसी प्रकार [Cd(NH3)4]2+( मृदु अम्ल + कठोर क्षारक)(अस्थायी संकुल) एवं [Cd(CN)4]2- मृदु अम्ल + मृदु क्षारक(स्थायी संकुल)

[Co(NH3)5F]2+( कठोर अम्ल + कठोर क्षारक) (स्थायी संकुल)  एवं [Co(NH3)5I]2+ कठोर अम्ल(Co) कठोर क्षारक((NH3)5)

मृदु क्षारक(I)(अस्थायी संकुल)

अतः पीयरसन धारणा से संकुलों के स्थायित्व का पता लगाया जा सकता है।पीयरसन नियम

(2) कठोर-मृदु स्पीशीज़ की अभिक्रियाओं की व्याख्या -कठोर – मृदु स्पीशीज़ के मध्य होने वाली अभिक्रिया से बनने वाला यौगिक HSAB सिद्धान्त के अनुसार कठोर-कठोर तथा मृदु-मृदु श्रेणी का ही होता है। अतः इन अभिक्रियाओं की व्याख्या HSAB सिद्धान्त से बेहतर ढंग से की जा सकती है।

Lil (कठोर-मृदु) +CSF(मृदु-कठोर)—-> LiF(कठोर-कठोर )  +  CsI; (मृदु-मृदु) AH = -138 kJ mol-1 (ऊष्माक्षेपी)

HgF2(मृदु-कठोर)    +  Bel2 (कठोर मृदु)——->BeF2 (कठोर-कठोर )+ MgI2; (मृदु-मृदु)AH = -397 kJmol-1

(3) यौगिकों की विलेयता की व्याख्या– कोई भी यौगिक किसी विलायक में तभी विलेय होता है जब यौगिक का मृदु भाग विलायक के मृदु भाग से संयुक्त होता है या यौगिक का कठोर भाग विलायक के कठोर भाग से संयुक्त होता है। उदाहरणार्थ-पीयरसन नियम

(i) Hg (OH)2 जल में शीघ्रता से विलेय होता है जबकि HgS शीघ्रता से विलेय नहीं होता है। यहाँ Hg2+ एक मृदु अम्ल तथा S2- एक मृदु क्षारक है जबकि OH एक कठोर क्षारक है। अत: HgS (मृदु + मृदु) अधिक स्थायी तथा Hg (OH)2 (मृदु + कठोर) कम स्थायी है। इसी कारण Hg(OH)2 शीघ्रता से विलेय हो जाता है।

(ii) धातु हैलाइडों की जल में विलेयता इसी आधार पर स्पष्ट की जा सकती है।

AgF(मृदु + कठोर)  ,AgCl (मृदु + कठोर) , AgBr(मृदु + सीमा-रेखा), AgI(मृदु + मृदु)

सिल्वर हैलाइडों की जल में विलेयता का क्रम निम्नानुसार पाया जाता है-

AgF(विलेय) > AgCl(आंशिक विलेय) >AgBr(आंशिक अविलेय) >AgI(विलेय)

(4) प्रकृति में धातुओं के पाये जाने की व्याख्या -प्रकृति में पाये जाने वाले धातु अयस्कों के रूपों की व्याख्या इस सिद्धांत के द्वारा की जा सकती है। उदाहरणार्थ-पीयरसन नियम

(i) मैग्नीशियम तथा कैल्सियम प्रकृति में कार्बोनेट के रूप में पाये जाते हैं, क्योंकि Mg+ तथा Ca2+ कठोर अम्ल एवं CO- कठोर क्षारक है । अत: MgCO3 तथा CaCO3 स्थायी यौगिक होंगे।

(ii) Alt+ एक कठोर अम्ल है। 02 भी एक कठोर क्षारक है । अतः प्रकृति में ऐल्युमिनियम Al203 के रूप में पाया जाता है।

(iii) Cut, Ag’, Hg 2+ सभी मृदु अम्ल हैं। S2- भी मृदु क्षारक है। अतः कॉपर, सिल्वर तथा मर्करी प्रकृति में Cu2S, AB2S तथा HgS के रूप में पाये जाते हैं।

(iv) Ni2+, Cu2+ तथा Pb2+ सीमा रेखा अम्ल हैं। अतः ये मृदु क्षारक तथा कठोर क्षारक दोनों के साथ संयुक्त हो सकते हैं। यही कारण है कि निकिल, कॉपर तथा लेड प्रकृति में सल्फाइड तथा कार्बोनेट दोनों ही रूपों में पाये जाते हैं।

(5) उत्प्रेरक के विषाक्त होने की व्याख्या – Pt तथा Pd उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। ये दोनों ही मृदु अम्ल हैं। HSAB सिद्धांत के अनुसार मृदु अम्ल, मृदु क्षारकों के साथ संयुक्त होकर स्थायी यौगिक बनाते हैं। अतः उपर्युक्त उत्प्रेरक CO, ऐल्कीन, फॉस्फोरस या आर्सेनिक लिगैण्डों के द्वारा विषाक्त हो जाते हैं। ये सभी लिगैण्ड मृदु क्षारक होते हैं।

ये लिगैण्ड धातु के ऊपर सुगमता से अधिशोषित होकर धातु के सक्रिय बिन्दुओं को समाप्त कर देते हैं। मृदु अम्ल उत्प्रेरक (Pt व Pd) कठोर क्षारकों जैसे—F, O तथा N से विषाक्त नहीं होते हैं।

(6) सहजीविता या सह-अस्तित्व (भोपाल; सागर; इन्दौर 2012 ) – इस सिद्धांत से कठोर-कठोर तथा मृदु-मृदु के सहजीविता या सह-अस्तित्व की व्याख्या की जा सकती है । मृदु क्षारक उस केन्द्र के प्रति अधिक आकर्षण रखते हैं, जो पहले ही मृदु क्षारक से जुड़ा रहता है।

इसी प्रकार कठोर क्षारक भी उसी केन्द्र की ओर अधिक आकर्षित होते हैं, जो पहले से ही कठोर क्षारक से जुड़ा हो। क्षारकों की इस प्रवृत्ति को सहजीविता कहते हैं।

पीयरसन नियम से आप क्या समझते हैं ? इस नियम की उपयोगिता बताइए।

F3B<— (आकर्षण केन्द्र कठोर क्षार)     +   NH3 (कठोर क्षारक)—->F3B <——— NH3

इसी प्रकार –पीयरसन नियम

H3B(आकर्षण केन्द्र मृदु अम्ल)  +H— मृदु  अम्ल—-→ H3B <— Hया BH4

अन्य उदाहरण-पीयरसन नियम

R2SBF3(मृदु-कठोर)  + R20(कठोर)——>R2OBF3(कठोर-कठोर)  + R2S(मृदु)

R2OBH3(कठोर-मृदु)  + R2S (मृदु) —–>R2SBF3(मृदु-मृदु)  + R2O (कठोर)

 

इस प्रकार निम्नलिखित अभिक्रिया की दिशा दाँयीं ओर ही होगी-पीयरसन नियम

BF3H + BH3F–   ——→ BF4 + BH4

CH3F +   CHF3 —–→ CH4 + CF4

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