kautilya kaal me रसायन शास्त्र का विकास 300 ई.पू.useful secrets

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kautilya kaal me रसायन शास्त्र का विकास ।इस कथन की पुष्टि उदाहरण सहित कीजिए।यह ब्लॉग बीएससी प्रथम वर्ष के विधार्थियो के लिए एग्जाम की द्रष्टि से बनाया गया हैं। यह प्रश्न मेजर केमिस्ट्री के यूनिट i यानि केमिस्ट्री फर्स्ट पेपर का हैं|

द्वारा-कुमार संतोष

kautilya kaal me रसायन शास्त्र का विकास

उत्तर-कौटिल्य काल (300 ई.पू.) में रसायन शास्त्र को अर्थशास्त्र से जोड़ा गया। मोती, रत्न एवं मणि, जो मूलतः रासायनिक पदार्थ हैं, का उपयोग आभूषण के रूप में किया जाने लगा। इसी काल में कठोरतम् पत्थर ‘हीरा’ के विभिन्न प्रकारों का वर्णन तथा प्रवाल या मूँगा (coral) के भी दो प्रकारों का वर्णन किया गया है। धातुकर्म भी इसी काल में किया जाने लगा अतः इसके लिए आवश्यक अयस्क (किट्ट), क्रुसिबल (मूषा) तथा भट्टी (अंगार), भस्म एवं आवश्यक उपकरणों का ज्ञान प्राप्त किया गया।

प्राचीन काल में भूमि के अन्दर विभिन्न प्रकार के धातुओं के होने की संभावना, भूमि को रंग तथा संगठन के अनुसार किया जाता है, जो इस प्रकार है—

(i) सोने की खान की पहचान करने के लिए तथा उसके पाए जाने की संभावना के लिए बताया गया कि जामुन, आम, कमल, तालफल, हरिद्रा के आसपास शुक (parrot) पंख, मयूर (peacock) पंख आदि के समान रंग वाले स्वच्छ और भारी जल में स्वर्ण उपस्थित होने की संभावना बताई गयी। यदि भूमि (मिट्टी या अयस्क) पीले, ताँबे जैसे लाल रंग की हो, तथा गलाने पर नीली धारियाँ पड़ जाए तथा गोली के समान होकर टूटे नहीं, और उसमें से बहुत-सा झाग और धूम्र (fen and smoke) निकले तो इस अयस्क में सोना अवश्य विद्यमान है।

(ii) यदि मिट्टी (अयस्क) कपूर या स्फटिक या मक्खन के समान हो, खाण्ड की राब (Sugar syrup), कचनार (Bauhinia), नई धान, मटर, अलसी के फूल आदि के समान रंग वाली हो तो उसमें चाँदी होने की संभावना है । जो मिट्टी ‘सीसा’ एवं अंजन (Sb2S3) युक्त हो, गर्म करने पर मुलायम हो जाती हो तथा भारी हो, उसमें चाँदी की उपस्थिति अवश्यंभावी है।

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धातुकर्म के लिए बताया गया कि धातु की अशुद्धि को दूर करने के लिए तीक्ष्ण मूत्र क्षार (यूरेट) से पचारित (digest) करने के बाद राजवृक्ष, बड़ (बरगद) के पत्तों के साथ अथवा भैंस, गधा, ऊँट या हाथी के बच्चे की ‘लीद’ (dung) के साथ तपाने पर शुद्ध धातु प्राप्त होती है।

(iii) जो प्रस्तर धातु भारी, चिकनी तथा मुलायम हो तथा जो भूमि भाग पीला या हरे रंग का हो, वहाँ सीसा और ताँबा पाए जाने की संभावना होती है। इसी प्रकार से लोहा और राँगा (टिन) जहाँ पाया जा सकता है, उस भूमि का भी वर्णन किया गया है।

(iv) सोने का परीक्षण – कलिंग देश या ताप्ती नदी से प्राप्त पत्थर से कसौटी (निकष) (touch stone) बनाया जाता है। सोने से इस निकष पर खींची गई रेखा का रंग यदि केसर जैसा हो, चिकना तथा मुलायम हो तो वह शुद्ध सोना होता है। पीला हरताल और हिंगुल (Cinnabar) के साथ गोमूत्र से गीले हाथ से छूने पर सोने पर सफेद-सा रंग आ जाता है।

कौटिल्य के काल में मिश्रधातु का भी प्रचलन था। सोना, चाँदी तथा ताँबे के अलग-अलग अनुपात से मिश्रधातु बनायी जाती थी ।

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