werner’s theory वेर्नर का उप सहसंयोजक सिद्धांत 23 Right Now

werner’s theory वेर्नर का उप सहसंयोजक सिद्धांत 23 Right Now
werner's theory

werner’s theory वेर्नर का उप सहसंयोजक सिद्धांत 23 Right Now.जटिल यौगिक, साधारण एवं द्विक लवणों से सर्वथा भिन्न होते हैं। जटिल निर्माण में कुछ आयनों का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो जाता है। उदाहरणार्थ – K4Fe(CN), एवं K3 Fe(CN). में Fe2+, Fe3+ एवं CN आयनों का परीक्षण नहीं प्राप्त होता है।

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इसके अतिरिक्त धातुओं और अमोनिया से बने अनेक यौगिक ज्ञात हैं, जिनके द्वारा धातु एवं अमोनिया के परीक्षण नहीं दिये जाते। इस प्रकार जटिल यौगिक अपनी बंध-प्रकृति या संरचना की जानकारी के अभाव में पूर्णतः रहस्यमय बने रहे।

वर्नर ने इन यौगिकों का अध्ययन सामान्य अभिक्रिया रसायन के माध्यम से किया। इन यौगिकों के अध्ययन में वर्नर द्वारा किसी भी आधुनिक उपकरण तकनीकी का उपयोग नहीं किया गया।

सन् 1893 में अल्फ्रेड वर्नर द्वारा विकसित सहायक या अवशिष्ट संयोजकता (Auxiliary or residual valency) की संकल्पना ने ऐसे यौगिकों के अस्तित्व की व्याख्या में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस सिद्धान्त के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अभिगृहीत निम्नानुसार हैं-

(i) अधिकांश तत्वों (विशेषकर संक्रमण धातुओं) की संयोजकता दो प्रकार की होती है-

प्राथमिक या आयनिक संयोजकता (Primary or ionisable valency)

तथा द्वितीयक या अन-आयनित संयोजकता (Secondary or non-ionic valency) ।

(ii) प्राथमिक संयोजकताएँ अ-दिशात्मक (Non-directional) होती हैं। आधुनिक व्याख्या के अ Galaxy A12ामान्यतः धनात्मक आयन के रूप में पाया जाता है। प्राथमिक संयोजकता संकुल आयन पर आवेशों की

संख्या होती है । यौगिकों में, यह आवेश समान संख्या में ऋणात्मक आयनों द्वारा संतुष्ट होती है। प्राथमिक संयोजकता का सामान्य लवणों तथा संकुलों में समान उपयोग होता है।

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इस प्रकार CoCl2(Co2+ + 2CI) में दो प्राथमिक संयोजकताएँ अर्थात् दो आयनिक बन्ध हैं। संकुल [Co(NH3)6]C] वास्तव में [Co(NH3) 6] तथा 3CI के रूप में पाया जाता है।

इस प्रकार इसकी प्राथमिक संयोजकता तीन है अर्थात् यहाँ पर तीन आयनिक बन्ध हूँ । अतः किसी धातु आयन की ऑक्सीकरण संख्या ही प्राथमिक संयोजकता होती है। इसलिए इसे मुख्य या आयनिक संयोजकता भी कहते हैं।

प्राथमिक संयोजकताएँ ऋणात्मक आयनों द्वारा संतुष्ट होती हैं तथा केन्द्रीय धातु आयनों में इसकी संलग्नता को बिन्दुकित रेखाओं (Dotted lines) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

(iii) द्वितीयक संयोजकताएँ दिशात्मक होती हैं। ये संयोजकताएँ केन्द्रीय धातु-आयन के चारों ओर अन्तराकाश (Space) में दिष्ट (Directed) रहती हैं । द्वितीयक संयोजकता की संख्या सहसंयोजित लिगैण्डों की संख्या के बराबर होती है, जिसे उप-सहसंयोजक संख्या कहा जाता है।

किसी संकुल धातु के साथ उप- में लिगैण्ड साधारणतया ऋणात्मक आयन (जैसे CI) या उदासीन अणु (जैसे NH3) होते हैं, किन्तु कभी-कभी लिगैण्ड धनात्मक आयन (जैसे NO+) भी हो सकते हैं।

इस प्रकार [Co(NH3)6]C13 में तीन CI आयन प्राथमिक संयोजकता से तथा छ: NH3 अणु द्वितीयक संयोजकताओं के द्वारा कोबाल्ट से संलग्न रहते हैं।

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(iv) द्वितीयक संयोजकताएँ दिशात्मक होती हैं, अतएव किसी संकुल आयन की एक निश्चित आकृति (ज्यामितीय) होती है।

उदाहरणार्थ [Co(NH3)6]3+ संकुल आयन अष्टफलकीय होता है। इस अभिगृहीत के अनुसार उप-सहसंयोजकता यौगिकों में विभिन्न प्रकार की समावयवता संभावना व्यक्त हुई। वर्नर ने कई संकुलों की आकृति का निर्धारण किया। वर्नर विशुद्ध अकार्बनिक यौगिकों को वास्तव में ध्रुवण-घूर्णन (Optically active) समावयवियों में वियोजित करने में सफल हुए ।

वर्नर सिद्धान्त का प्रायोगिक सत्यापन

(EXPERIMENTAL VERIFICATION OF WERNER’S THEORY)

वर्नर द्वारा अपने सिद्धान्त का प्रायोगिक सत्यापन के लिए कोबाल्ट (III) क्लोराइड एवं अमोनिया से बने चार प्रकार के कोबाल्ट ऐमीन यौगिकों का अध्ययन किया गया। वर्नर ने इस प्रायोगिक अध्ययन के लिए उप- सहसंयोजन यौगिकों के चालकताओं का मापन (Conductivities measurement) किया। वर्नर द्वारा कोबाल्ट ऐमीन यौगिकों पर किये गये प्रयोग के तथ्य निम्नानुसार हैं-

कोबाल्ट (III) ऐमीन (Cobalt (III) Ammines)

(i) ल्यूटियो कोबाल्टिक क्लोराइड (CoCl3.6NH3) —

यह पीले रंग का क्रिस्टलीय यौगिक है, जो सान्द्र H2SO4 से अभिक्रिया कर समस्त क्लोरीन, HCl के रूप में निकाल देता है तथा Co2 (SO4)3.12NH3 शेष रहता है ।

इसके जलीय विलयन में AgNO 3 मिलाने पर समस्त क्लोरीन AgCI के सफेद अवक्षेप के रूप में अवक्षेपित हो जाती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कोबाल्ट तथा क्लोरीन के मध्य आयनिक बन्ध है ।

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इसी प्रकार HCl से 100°C में अभिक्रिया कराने पर भी इसमें उपस्थित NH, अप्रभावित रहती है अर्थात् कोबाल्ट से अमोनिया अणु अत्यधिक स्थायित्व से जुड़े हैं। चालकता मापन से इस यौगिक में 4 आयनों की उपस्थिति ज्ञात हुई।

आधुनिक मान्यता के अनुसार इस संकुल को [Co(NH3)6]Cl3 लिखा जाता है। इस प्रकार तीन CI आयनिक होते हैं तथा छ: NH3 लिगैण्ड Co3+ धातु आयन के साथ उप-सहसंयोजक बन्ध द्वारा जुड़कर संकुल आयन [Co(NH3)6]3+ बनाते हैं।

(ii) परप्यूरियो कोबाल्टिक क्लोराइड (CoCl3.5NH3 ) –

यह एक बैंगनी रंग का यौगिक है, जो H,SO4 के साथ केवल दो क्लोरीन HCI के रूप में बाहर निकालता है। इस संकुल का सूत्र (Col'(NH3)5Cl]2+(CI)2 लिखा जाता है तथा वर्नर सिद्धान्त के आधार पर उप-सहसंयोजक क्षेत्र में पाया जाने वाला CH- आयन प्राथमिक एवं द्वितीयक संयोजकता दोनों को संतुष्ट करता है।

इस प्रकार [Co (NH3),CI]Cl2 आयनित होकर Co2 (NH3)s]CI]2+ संकुल आयन तथा CI- आयन देता है। इसके जलीय विलयन में AgNO3 मिलाने पर कवल दो ही CI- आयन AgCI के रूप में अवक्षेपित होता है।

अतः इस यौगिक में दो क्लोराइड आयन कोबाल्ट नायन से आयनिक बन्ध द्वारा जुड़े रहते हैं। पाँच NH3 अणु तथा एक CI- आयन उप-सहसंयोजक बन्धों द्वारा धातु आयन से संलग्न रहते हैं ।

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(iii) रोजियो कोबाल्टिक क्लोराइड (CoCl3.5NH3. H2O) – यह एक गुलाबी रंग का क्रिस्टलीय यौगिक है। इस यौगिक में पाँन्न NH, अणु तथा एक HO अणु द्वितीयक संयोजकता द्वारा कोबाल्ट धातु आयन से जुड़े रहते हैं तथा इसलिए ये स्थायी तथा अन-आयनित होते हैं। इस यौगिक के जलीय विलयन में एक संकुल आयन [Col(NH3)5Cl] + तथा तीन सामान्य CI- आयन मिलता है।

(iv) प्रेशियो तथा बायलियो कोबाल्टिक क्लोराइड (CoCl3.4NH3) — इन दोनों यौगिकों का अणु सूत्र समान होता है। इनमें से प्रेशियो हरे रंग का तथा बायलियो बैंगनी रंग का यौगिक है।

इस यौगिक में तीन क्लोराइड आयन पाये जाते हैं, किन्तु केवल एक CI- ही AgNO3 से अवक्षेपित होता है। वर्नर के अनुसार एक CI- प्राथमिक संयोजकता से तथा चार NH, अणु व दो CI- द्वितीयक संयोजकता से कोबाल्ट धातु आयन से जुड़े होते हैं। इन दोनों यौगिक का सूत्र [Co(NH3)4]Cl2]CI लिखा जाता है। विस्तार से अध्ययन पर ज्ञात हुआ कि ये दोनों यौगिक समावयवी (Isomers) हैं।

विभिन्न कोबाल्ट ऐमीन यौगिकों के मूल सूत्र, नाम तथा वर्तमान सूत्र एवं नाम निम्न सारिणी में दिये गये हैं-

werner's theory
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इस प्रकार वर्नर द्वारा यह सिद्ध किया गया कि इन संकुलों में द्वितीयक संयोजकताओं की संख्या छ: होती है। कोबाल्ट ऐमीन यौगिक अन्य ऋणायनों द्वारा भी बनायी जा सकती है। उदाहरणार्थ-

C0(NO3)3.6NH3, CoX3.6NH3 (X= हैलोजन), C02 (SO4)3.12NH3 आदि।

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प्लेटिनम ऐमीन (Platinum Ammines)

वर्नर द्वारा कोबाल्ट ऐमीन यौगिकों के बाद अन्य कई संकुलों का अध्ययन किया गया, जिनमें प्लेटिनम ऐमीन संकुल भी सम्मिलित है। प्लेटिनम +2 तथा +4 ऑक्सीकरण अवस्थाओं में ऐमीन संकुल बनाता है।

+2 ऑक्सीकरण अवस्था में उप-सहसंयोजक संख्या 4 तथा +4 ऑक्सीकरण अवस्था में उप-सहसंयोजक संख्या 6 के ऐमीन यौगिक बनते हैं । उप-सहसंयोजक संख्या 4 वाले ऐमीन यौगिक वर्गसमतलीय (Square planar) तथा उप-सहसंयोजक संख्या 6 वाले यौगिक अष्टफलकीय (Octahedral) होते हैं।

चालकता मापन तथा AgNO3 से प्राप्त अवक्षेप से यह स्पष्ट होता है कि इन यौगिकों में आयनों की संख्या कम होती जाती है, जैसे-जैसे क्लोरीन उप-सहसंयोजक क्षेत्र (Co-ordination sphere) में प्रवेश करती है।’

वर्नर सिद्धान्त का अनुप्रयोग (Applications of Werner’s Theory) –

वर्नर ने अपने सिद्धान्त के अनुप्रयोग द्वारा कोबाल्ट (III) ऐमीन संकुलों, प्लेटिनम (IV) ऐमीन संकुलों की संरचना एवं ज्यामितीय को स्पष्ट किया।

वर्नर ने प्राथमिक संयोजकताओं को बिंदुकित रेखाओं (Dotted lines) तथा द्वितीयक संयोजकताओं को ठोस रेखाओं (Solid lines) से प्रदर्शित किया तथा दोनों संयोजकताएँ एक साथ संतुष्ट हुई हैं, उन्हें ठोस तथा बिन्दुकित दोनों रेखाओं से व्यक्त किया गया है।

इस प्रकार वर्नर ने CoCl2.6NH3, CoCl3.5NH3.H, O, CoCl3.5NH3, CoCl3.4NH; जैसे संकुलों को निम्न प्रकार की संरचनाओं से स्पष्ट

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इस प्रकार वर्नर अपने निष्कर्षों के अनुसार सही थे, कि कोबाल्ट (III) एवं प्लेटिनम (IV) धातुओं के लिए उप-सहसंयोजक संख्या 6 होती है तथा ये अष्टफलकीय (Octahedral) ज्यामितीय वाले संकुल बनाते हैं।

वर्नर ने अपने सिद्धान्त के अनुप्रयोग से पैलेडियम तथा प्लेटिनम के 4 उप-सहसंयोजक वाले संकुलों की वर्ग- समतलीय (Square planar) ज्यामिती की सफल व्याख्या प्रस्तुत की ।

वर्नर ने अपने सिद्धान्त के अनुप्रयोग से संकुलों के विभिन्न समावयवी की संभावनाओं को रेखांकित किया,

उदाहरणार्थ – अष्टफलकीय संकुल [Co(NH3)4Cl2]C1 के लिए दो समावयवियों (एक बैंगनी तथा एक हरा) की पुष्टि की।

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