Coordination Compounds: विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नवाचार की गुप्त सामग्री 23 Useful

Coordination Compounds: विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नवाचार की गुप्त सामग्री|किसी उप-सहसंयोजक यौगिक में एक केन्द्रीय परमाणु/आयन होता है, जो उदासीन अणुओं या आयनो से घिरा होता है। केन्द्रीय परमाणु/आयन सामान्यतः धातु आयन होते हैं। अत: इन्हें केन्द्रीय धातु आयन (Central _metal ion) कहते हैं तथा इनसे जुड़े उदासीन अणुओं या आयनों को लिगैण्ड (Ligand) कहते हैं।

Coordination Compounds: विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नवाचार की गुप्त सामग्री

(1)केन्द्रीय धातु परमाणु/आयन (Central Metal Atom / Ion) –

किसी संकुल या जटिल में एक मुख्य धातु परमाणु या आयन होता है, जिसके चारों तरफ अनेक अणु या आयन जुड़े रहते हैं। अतः इस परमाणु या धनायन को केन्द्रीय धातु परमाणु या केन्द्रीय धातु आयन कहते हैं ।

उदाहरण-

[Ni(CO4)]° टेट्राकार्बोनिल निकिल में Ni° केन्द्रीय धातु परमाणु है।

इसी प्रकार [Fe(CN)6] – हेक्सासायनोफेरेट में Fe2+ केन्द्रीय धातु आयन है ।

(2) लिंगैण्ड (Ligand) –

किसी संकुल में केन्द्रीय धातु आयन के साथ संयुक्त उदासीन अणुओं या आयनों (सामान्यतः ऋणायनों) को लिगैण्ड कहते हैं।

उदाहरणार्थ- संकुल आयन [Cu(NH3)4]2+ में 4NH3 दाता (Donor) की तरह कार्य करते हैं तथा धातु के केन्द्रीय आयन को एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म प्रदान करते हैं।

अणु एवं संकुल आयन [Fe (CN)6] 4- में 6CN आयन लिगैण्ड है। सामान्यतः अधिकांश संकुलों में लिगैण्ड किन्तु धातु कार्बोनिलों में CO लिगैण्ड दाता तथा ग्राही (Donor and acceptor) दोनों की तरह, (M _CO) या [M ← CO] कार्य करते हैं ।

धातु आयन के चारों ओर लिगैण्ड एक विशेष ज्यामिति (Geometry) के रूप में व्यवस्थित रहते हैं।

सामान्यत: यह ज्यामितीय रेखीय (Linear), समत्रिबाहु त्रिभुज (Equilateral triangle), चतुष्फलकीय (Tetrahedral), वर्ग तलीय (Square planar), त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय (Trigonal bipyramidal), वर्ग पिरामिडी (Square pyramidal) या अष्टफलकीय (Octahedral) होती है ।

(3) उप-सहसंयोजन संख्या (Co-ordination nunber) –

किसी संकुल में केन्द्रीय धातु आयन से संयुक्त लिगैण्डों द्वारा प्रदत्त इलेक्ट्रॉन युग्मों की कुल संख्या को उस केन्द्रीय धातु की उप-सहसंयोजक संख्या कहते हैं।

दूसरे शब्दों में, केन्द्रीय धातु आयन तथा लिगैण्डों के दाता परमाणुओं के बीच बनने वाली कुल रासायनिक बन्धों की संख्या को उप-सहसंयोजक संख्या कहते हैं।

उदाहरण-उपर्युक्त संकुलों में

[Ag(CN)2]2 -Ag 2+ की 2

[Ni(NH3)6]3+ -Ni2+ की 6

[Cu(NH3)4]2+ -Cu2+ की 4

तथा [Fe(CN).] – तथा Fe3+ की 6 उप-सहसंयोजक संख्या है।

पूर्व में यह मान्यता थी कि प्रत्येक धातु की उप-सहसंयोजक संख्या निश्चित है, परन्तु अब यह ज्ञात है कि किसी धातु के विभिन्न संकुलों में उसकी उप-सहसंयोजक संख्या भिन्न-भिन्न हो सकती है।

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निम्नलिखित सारिणी में कुछ प्रमुख धातुओं की उप-सहसंयोजक संख्या दी गई है—

Coordination Compounds:
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(4) उप-सहसंयोजक क्षेत्र (Co-ordination sphere) –

किसी संकुल में केन्द्रीय धातु आयन तथा उससे जुड़े लिगैण्ड समूहों को वर्ग कोष्ठक [ ] के अन्दर लिखा जाता है।इसे ही उप-सहसंयोजक क्षेत्र कहते हैं। वर्नर ने इसे आकर्षण का प्रथम क्षेत्र (First sphere of attraction) कहा।

संकुल में वर्ग कोष्ठक के बाहरजो आयन रहता है, उस क्षेत्र को आकर्षण का द्वितीय क्षेत्र (Second sphere of attraction) कहते हैं। उप-सहसंयोजक रसायन का प्रारम्भिक इतिहास

(PREMITIVE HISTORY OF CO-ORDINATION CHEMISTRY)

प्रथम धातु संकुल की खोज के संबंध में निश्चित रूप से कहना कठिन है। सम्भवतः प्रशियन (Prussian blue) KCN. Fe(CN) 2.Fe(CN)3 प्रथम ज्ञात संकुल यौगिक है।

प्रशियन ब्लू की खोज सन् 1704 में रंग बनाने वाले ने की थी। फ्रांस के रसायनज्ञ टेसर्ट (Tessaert1798) ने कोबाल्ट क्लोराइड के अमोनिया में बने विलयन को रातभर वायु के सम्पर्क में खुला छोड़ कर एक नारंगी रंग का क्रिस्टलीय यौगिक (CoC13.6NH3) प्राप्त किया।

टेसर्ट के इस प्रयोग को उप-सहसंयोजक रसायन की वास्तविक शुरुआत माना जाता है। इसके बाद लगभग 100 वर्षों तक टेसर्ट के इस प्रायोगिक अवलोकन का संतोषजनक उत्तर नहीं दिया जा सका।

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इस अवधि में CoCl2 और NH3 के साथ कई उप- सहसंयोजक यौगिक बनाकर उसके गुणों का अध्ययन किया गया। 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कई विशिष्ट रसायनज्ञों बर्जिलियस, लीबिग, डुयमास, लारेंट्ज, विलियमसन इत्यादि ने जटिल यौगिकों के निर्माण प्रक्रिया का अध्ययन किया, किन्तु किसी निश्चित परिणाम तक पहुँचने में सफल नहीं हुए।

इन यौगिकों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण विकास वर्नर (A. Werner, 1893) से प्रारम्भ होता है । वर्नर ने अपने प्रसिद्ध उप- सहसंयोजक सिद्धान्त से उप-सहसंयोजक जटिल यौगिकों में पाये जाने वाले बन्ध की प्रकृति की व्याख्या प्रस्तुत की।

यहाँ यह स्मरणीय होना चाहिए कि वर्नर द्वारा उप-सहसंयोजक सिद्धान्त की रचना थाम्पसन के इलेक्ट्रॉन की खोज (1896) एवं संयोजकता के इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त के पहले किया गया था।

वर्नर ने लगभग बीस वर्ष तक अपने सिद्धान्तों के अभिगृहितों को प्रयोगों द्वारा सिद्ध करने के लिए कठोर परिश्रम किया । इस सिद्धान्त के लिए अल्फ्रेड वर्नर को सन् 1913 में रसायन शास्त्र में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

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वर्नर सिद्धान्त के अभिगृहीत (Postulates) आज भी वहीं हैं, किन्तु उनकी व्याख्या में समय के साथ परिवर्तन हुआ । वर्नर के बाद कई रसायनज्ञों ने इस क्षेत्र में कार्य किया।

फीफर एवं लेने ने आंतरिक जटिल यौगिकों (Inner com- plexes compounds) पर उल्लेखनीय कार्य किया। बोडलेण्डर, जैरम, लेडन ने इसके स्थायित्व नियतांक का निर्धारण किया। फीगल, प्रोडिन्जर तथा अन्य रसायनज्ञों ने संकुल यौगिकों की विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगिता का अध्ययन किया।

Kohlrausch’s Law

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