vbt theory in hindi 100% clear Concept.लूइस (Lewis) का सिद्धान्त अणुओं के बन्ध कोण (Bond Angles) तथा आकार को समझाने मे असमर्थ है।हिटलर तथा लण्डन (Hitler & London) ने सन् 1927 में एक सिद्धान्त को प्रतिपादित किया जो विपरित चक्रण (Spins) के परिणामी उदासीनीकरण (Neutralisation) पर आधारित है ।
vbt theory in hindi 100% clear Concept
vbt full form
VALENCE BOND THEORY
vbt postulates
संयोजकता बन्ध सिद्धान्त postulates
हम जानते है कि कक्षक मे विपरीत चक्रण वाले इलेक्ट्रानो की अधिकतम मुख्या दो हो सकती है। जब तक की कक्षक में इस तरह के इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित होते है तब तक ये रासायनिक संयोजन के लिये प्राप्त (Available) नही होते है ।
बन्धुता के लिये यह आवश्यक है कि प्रत्येक परमाणु में एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होना चाहिये, जो युग्मता (Paring) में भाग ले सके । तत्व की संयोजकता इस प्रकार से परमाणु में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉनो की संख्या होती हैं ।
यह सिद्धान्त यद्धपि कुछ वास्तविकताओं को समझाने में असमर्थ है ।
- (1) यह PCI5 SF6 आदि के निर्माण को नहीं समझाता ।
- (2) यह् किसी इलेक्ट्रॉन बन्ध (Singlet Linkage) तथा त्रि-इलेक्ट्रॉन बन्ध (Three Electron Bond) की उपस्थिति को समझाने में समर्थ नही है ।
- (3) यह उपसंहसयोजी बन्ध के निर्माण को नही मानता कयोंकि इस सिद्धान्त में यह माना गया है कि साझित इलेक्ट्रॉन, विभिन्न परमाणु बनाते है।
अणुओं की सरंचना को समझाने हेतु पोलिगं तथा स्लेटर (Pauling & Slater) ने सन् 1931 में इस सिद्धान्त का नवीनीकरण किया ।
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सिद्धान्त के महत्वपूर्ण अधिगृहण (Postulates) निम्न रूप से है ।
(अ) सहसंयोजी बन्य का निर्माण एक परमाणु की अर्ध-पूरित कक्षक तथा दूसरे परमाणु की अर्ध पूरित कक्षक के अतिव्यायन (Overlapping) द्वारा होता है।
(ब) रासायनिक बन्ध का निर्माण तब ही होता है जब दो विपरीत चक्रेण वाले इलेक्ट्रॉन युग्मित होते है ।
(स) प्रबल बन्ध का निर्माण ऐसे दो परमाणुओं के कक्षको के मध्य होता है जिनमे अधिकतम अतिव्यापन होता है।
(द) केवल उन इलेक्ट्रॉनो के कक्षकों का अतिव्यापन सम्भव है जो बन्ध निर्माण में भाग लेते है तथा दूसरे परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनो के साथ यह सम्भव नही है।
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(इ) बन्ध निर्माण की दिशा उस दिशा में होगी जिसमें कक्षक की संख्या अधिक होगी । इस प्रकार से समान स्थायित्वता वाले दो कक्षको के मध्य जो अधिक दिष्टता पूर्वक सान्द्रता (Directionally Concentrated) होगा वही अधिक प्रबल बन्ध बनायेगा
(फ) s-कुक्षक वृतीय सममित (Spherically Symmetrical) होते है इसलिये उनकी कोई विशेष दिशा नहीं होती है। अवृतीय कक्षक जैसे p तथा d कक्षक कक्ष के अन्दर ही अधिकतम घनत्व वाली दिशा में बँध बनाने का प्रयत्न करते है ।
अपूर्ण p तथा व d कक्षक वाले परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों का वितरण हुण्ड के नियम का पालन करता है, जिसके अनुसार जब तक सभी प्राप्त कक्षको में एक-एक इलेक्ट्रॉन नही होगा तब तक इलेक्ट्रॉन युग्मित (Paired) नही होगें ।
आक्सीजन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1S22S22px22py12pz1 है । इसे विन्यास (Configuration) के अनुसार 1s, 2s तथा 2px, कक्षक (दो इलेक्ट्रॉनो द्वारा) पूर्ण है। जबकि 2py1 तथा 2pz1 इलेक्ट्रॉन एकल है ।
इस प्रकार से आक्सीजन के p-कक्षक में दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते है जिससे यह प्रदर्शित होता है कि आक्सीजन की संयोजकता दो है । इसी प्रकार से नाइट्रोजन का विन्यास 1S22S22px12py12pz1 होता है।
यहाँ पर सभी 2p कक्षक अयुग्मित है, इसलिये नाइट्रोजन की संयोजकता तीन है।
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difference between vbt and mot
इसका मूल मंत्र हैं कि जब दो एटम एक मॉलिक्यूल बनते हैं,तो उनके वैलेंस इलेक्ट्रॉन्स एक दुसरे के साथ अपने एटॉमिक ऑर्बिटल को ओवरलैप करते हैं ओर एक नया मॉलिक्यूलर ऑर्बिटल बनाते हैं|
इससे कोवेलेंट बांड का फार्मेशन होता हैं |VBT के अनुसार ,एटम के वैलेंस इलेक्ट्रॉन्स एक दुसरे के साथ इंटरेक्ट करते हैं,ओर ये इंटरेक्शन एटॉमिक ऑर्बिटल के ओवरलैप से होता हैं|
इसकेअनुसार एटम के वैलेंस एटॉमिक ऑर्बिटल कंबाइन होकर नए मॉलिक्यूलर ऑर्बिटल को बनाते हैं| MOT का मूल मंत्र हैं की नए ऑर्बिटल,एटॉमिक ऑर्बिटल के कॉम्बिनेशन से बनते हैं और इनमे इलेक्ट्रान होते हैं|
MOT के हिसाब से, एक molecule के इलेक्ट्रान डिस्ट्रीब्यूशन को describe करने के लिए नए ऑर्बिटल की ज़रूरत होती हैंजो कि वैलेंस एटॉमिक ऑर्बिटल के के कॉम्बिनेशन से आती हैं|
सामान्य तौर पर,VBT वैलेंस इलेक्ट्रान के इंटरेक्शन को emphasize करता हैं,जबकि MOT एटम के वैलेंस ऑर्बिटल के कॉम्बिनेशन को बढावा देता हैं |
दोनों थेओरी अपने-अपने तरीके से कोवेलेंट bonding kp समझाना हैं,लेकिन उनका अप्रोच अलग होता हैं|\
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difference between vbt and cft
इस थ्योरी के अनुसार दो वैलेंस इलेक्ट्रान एक दुसरे के साथ ओवरलैप करते हैं और एक नया मॉलिक्यूलर ऑर्बिटल बनाते हैं |
यह थ्योरी संक्रमण मेटल कोम्प्लेक्सेस के स्ट्रक्चर और प्रॉपर्टीज को समझाने का तरीका हैं |CFT के अनुसार ट्रांजीशन मेटल आयन के आस-पास के लिगंड्स के कारन ट्रांजीशन मेटल के d -ऑर्बिटल अलग-अलग एनर्जी लेवल पर हो जाते हैं | इससे इलेक्ट्रान डिस्ट्रीब्यूशन और काम्प्लेक्स के ज्योमेट्री को समझने में मदद मिलती हैं |
इन दोनों थ्योरी का मुख्य अंतर यह हैं कि VBT mainly covalent bonding को एक्सप्लेन करने में मदद करता हैं,जबकि CFT ट्रांजीशन मेटल कोम्प्लेक्सेस के इलेक्ट्रॉनिक स्ट्रक्चर को समझने में फोकस्ड हैं |
VBT मॉलिक्यूलर ऑर्बिटल के ओवरलैप पर आधारित हैं, जबकि CFT d -ऑर्बिटल के तौर पर एनर्जी लेवल पर आधारित हैं|\
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limitations of vbt theory/drawbacks of vbt
FAQ
vbt examples
vbt of cof6 3-
vbt of nicl4 2-
explain the structure of co(nh3)6 3+ based on vbt