11इसी वजह से वर्तमान में प्राकृतिक एवं कार्बनिक खेती पर ज्यादा बल दिया जा रहा है। ऐसे में खरपतवार तथा मिट्टी में पाये जाने वाले अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों के नियंत्रण के लिए मृदा सूर्यीकरण तकनीक कारगर साबित होगी।
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मृदा सूर्यीकरण तकनीक में पारदर्शी पॉलीथीन (प्लास्टिक मल्चिंग) से वर्ष के अधिक तापमान वाले महीनों (मई-जून) में सिंचाई उपरान्त खाली पड़े खेत को ढक देते हैं, और पालीथीन के किनारों को मिट्टी से अच्छी तरह दबा देते हैं, ताकि मृदा में अवशोषित एवं संचित तापर बाहर न निकल सकें।
जिसके फलस्वरूप खेत की सतह पर तापमान में लगभग 8-12 सेंटीग्रेड की वृद्धि हो जाती है। जो कि मृदा में पाये जाने वाले हानिकारक सूक्ष्म जीवाणुओं एवं खरपतवारों के बीजों को नष्ट करता है।
मृदा सूिर्यीकरण तकनीक से विभिन्न मृदाओं के तापमान में वृद्धि का अवलोकन सारणी म में दिये गये आँकड़ों से किया जा सकता है। इन ऑकड़ों से सात विदित होता है कि सतह पर सामान्य दशा की तुलना में सूर्यीकृत दशा में मृदा तापमान लगभग 8–10” सेंटीग्रेड अधिक होता है|
जो कि विभिन्न प्रकार के खरपतवारों व मृदा जनित सूक्ष्म जीवाणुओं, परजीवियों एवं सूत्रकृमि के विनाश के लिए काफी होता है साथ ही साथ इसका भी पता चलता है कि काली मिट्टी हल्के हरे रंग की तुलना में सौर ऊष्मा ज्यादा अवशोषित करती है।
मृदा तापमान (डिग्री सेन्टीग्रेड) पर सूर्यीकरण तकनीक का प्रभाव
दशा | मृदा गहराई (से.मी.) | |||||
0.0 | 7.5 | 10.0 | ||||
भारी मृदा (काली) | हल्की मृदा (दौमट) | भारी मृदा (काली) | हल्की मृदा (दौमट) | भारी मृदा (काली) | हल्की मृदा (दौमट) | |
सामान्य दशा | 49 | 47 | 43 | 41 | 39 | 37 |
सूर्यीकृत दशा | 58 | 56 | 49 | 45 | 43 | 42 |
मृदा सूर्यीकरण द्वारा प्रभावी नियंत्रण हेतु निम्नलिखित कारकों पर ध्यान देना आवश्यक है :-
(1) सौर ऊर्जा का अवशोषण एवं संचयन अधिक हो सके इसके लिए पतली (0.05 मि.मी. या 20–25 माइको मीटर) एवं पारदर्शी पॉलीथीन सीट, जो कि मोटा एवं काली पॉलीथीन सीट की तुलना में अधिक प्रभावशाली होती है, का प्रयोग करना चाहिए।
(2) सौर ऊष्मा के अधिकतम शोषण तथा मृदा के तापमान में अधिकतम वृद्धि के लिए पॉलीथीन को इस तरह से बिछाना चाहिए, कि जमीन से बिल्कुल चिपकी रहे एवं उसके नीचे कम से कम हवा रहे । जिससे सौर ऊष्मा का अधिक शोषण एवं मृदा के तापमान में अधिक वृद्धि हो सके। इसके लिए खेतों को अच्छी तरह से समतल करना आवश्यक है।
(3) मृदा में नमी की मात्रा इस तकनीक की सफलता का एक मुख्य कारक इसलिए पॉलीथीन बिछाने से पहले खेत की हल्की सिंचाई (50 मि.मी.) कर देना अति आवश्यक है। इससे मृदा में पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवाणु पर सौर ऊष्मा का प्रभाव बढ़ जाता है तथा साथ ही साथ ऊष्मा का संचालन अधिक गहराई तक होता है।
(4) तीव्र गर्मी वाले महिनों में (मई से जून) जब खेत में कोई फसल नहीं हो, सूर्यीकरण करना तथा अधिक से अधिक समय तक पॉलीथीन बिछाकर रखने से इस तकनीक की सफलता में वृद्धि होती है । साधारणतः 4-6 सप्ताह तक यह विधि करने पर बहुतांश खरपतवार नष्ट हो जाते हैं ।

(5) मृदा सूर्यीकरण का प्रभाव मुख्यतः भूमि के ऊपरी सतह (0-10 ) तक रहता है। इसके प्रभाव को ज्यादा गहराई तक पहुँचाने के लिए सूर्यीकरण की अवधि 8-10 सप्ताह का होना चाहिए। जिससे कन्द व गांठों से उगने वाले खरपतवार भी नष्ट हो जाये ।
(6) मृदा सूर्यीकरण के उपरान्त खेत में जुताई कार्य वर्जित हैं अन्यथा इसका असर कम हो जाता है अतः बुवाई के लिये डिबलर या तो अन्य यन्त्र जो केवल कूंड बनाने का कार्य करें, जैसे सीड ड्रिल आदि का ही प्रयोग करना चाहिए।
जिससे मृदा की सतह में कोई अव्यवस्था न हो । अतः इस तकनीक का पूर्ण लाभ लेने के लिए किसान भाइयों को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस तकनीक का असर 2-3 फसलों तक रहता है।
(7) साधारणतः 4–6 सप्ताह के मृदा सूर्यीकरण से बहुतायत खरपतवारों का पूर्ण नियंत्रण हो जाता है कुछ खरपतवार जैसे नागर, मोथा, दूब घास या कांस जिनका प्रजनन कंद या तने के गांठों से होता है|
पर मृदा सूर्यीकरण का कम प्रभाव पड़ता हैं क्योंकि जमीन के अन्दर कंद या गांठे प्रायः अधिक गहराइयों में होती है साथ ही साथ कुछ खरपतवार जैसे सेंजी (मिलीलोटस इंडिका या अल्वा), हिरन खुरी (केनवासवुलस अरवेन्सिन) जिसके बीज का आवरण काफी सख्त होता है पर भी सूर्यीकरण का प्रभाव कम पड़ता है।
कठिनाईयाँ एवं सीमायें :-soil solarization in hindi

वैसे तो मृदा सूर्यीकरण तकनीक काफी जॉची परखी तकनीक है तथा किसानों के लिए अत्यन्त उपयोगी एवं लाभकारी है। फिर भी इस तकनीक की निम्नलिखित सीमायें हैं :-
(1) पालीथीन सीट की लागत अधिक होने से यह तकनीक काफी खर्चीली है। फिर भी इस तकनीक का प्रयोग नगदी फसलों या ऊँची कीमत वाली फसलों, पृष्पोत्पादन और विभिन्न नर्सरियों में करने पर आर्थिक दृष्टि से काफी लाभदायक होगा।
पतली पॉलीथीन (50 माइक्रोमीटर या कम) जो कि ज्यादा प्रभावशाली है और दोबारा दूसरे खेत में प्रयोग करने से भी अधिक लागत में कमी आयेगी।
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इस तकनीक की आर्थिक लागत यदि भूमि की तैयारी पर की गई खर्च की बचत,प्रतिवर्ष शाकनाशी, सूत्रकृमिनाशी एवं कवकनाशी रसायनों पर आने वाले खर्च में बचत, फसलों को हानि पहुँचाने वाले विभिन्न कारकों का नियंत्रण, भूमि में पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि 2 से 3 फसलों तक प्रभावी असर एवं उत्पादन में वृद्धि इत्यादि को ध्यान में रखकर गणना की जाये तो यह तकनीक काफी सस्तीर एवं लाभकारी होगी।
(2) इस तकनीक का उपयोग केवल उन्हीं क्षेत्रों में संभव है, जहाँ पर कम से कम 6 से 8 हफ्तों तक आसमान साफ एवं वातावरण का तापमान 40 “सेन्टीग्रेड से अधिक रहता हो।
(3) निचली भूमि जहाँ पर वर्षा ऋतु में भराव हो वहाँ पर यह तकनीक कारगार सिद्ध नहीं होगी।
मृदा सूर्यीकरण का खरपतवारों की संख्यों पर प्रभाव
प्रमुख खरपतवार | सूर्यीकृत रहित | सूर्यीकृत | प्रतिशत |
पथरचट्टा (ट्राइएन्थिमा पारचुलाकेस्ट्र) | 173 | 3 | 98 |
लहसुआ (डाइजेरा अरबेन्सिस) | 125 | 3 | 98 |
मकड़ा (डैक्टीलोक्टेनियम इजिप्शियम) | 139 | 21 | 85 |
कनकौआ (कोमेलिना बैधलेन्सिस | 14 | 0 | 100 |
जंगली जई (चिनोपोडियम एल्बम) | 9 | 0 | 100 |
बथुआ (चिनोपोडियम एल्बम) | 30 | 0 | 100 |
गुल्लीबण्डा (फेलेरिस माइनर) | 41 | 0 | 100 |
गाजर घास (पारथेनियम हिस्टीफोरस) | 3 | 0 | 100 |
दूधी (यूफोरबिया जेनीकुलाटा)
| 15 | 0 | 100 |
मृदा सूर्यीकरण के उपरांत खेती की तैयारी मुख्यतः, जुताई पर आने वाला खर्च
समाप्त हो जाता है