(HIGH PERFORMANCE LIQUID CHROMATOGRAPHY-HPLC).उच्च दाब तरल वर्णलेखिकी (High performance liquid chromatography, HPLC) एक उच्च विभेदन क्षमता वाली तकनीक है जो शीघ्रता से होती है।
इसकी विभेदन क्षमता द्रव क्रोमेटोग्राफी से सात गुना अधिक होती है। इसकी उच्च विभेदन क्षमता इसके कॉलम में भरे अति सूक्ष्म (5-20H ) कणों के कारण होती है।
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सिद्धांत (Principle) –
HPLC में पृथक्करण का सिद्धांत चलित प्रावस्था व स्थिर प्रावस्था (कॉलम ठोस अधिशोषक से भरा) के बीच नमूने के घटकों के वितरण पर आधारित है ।
घटकों की संरचना के आधार पर उसके अणु जब स्थिर प्रावस्था पर से गुजरते हैं, तब उस पर अवरोधित (retarded) हो जाते हैं। परंतु सबका अवरोधन समय (retention time) अलग-अलग होता है जो पदार्थ व कॉलम के पैकिंग पदार्थ के अंतराअणुक आकर्षण (affinity) पर निर्भर करता है ।
इसी कारण अलग-अलग घटक, अलग-अलग समय पर क्षालित (elute) होते हैं। जैसे—ग्लूकोज का अवरोधन समय (retention time) 5 मिनट है। परंतु सुक्रोज का 8 मिनट है।
प्रायोगिक विधि (Practical Method)
HPLC में प्रयुक्त उपकरण चित्र में दर्शाये अनुसार व्यवस्थित होता है। विलायक को पंप के द्वारा कॉलम में प्रविष्ट कराया जाता है । नमूना जिसका विश्लेषण करना है, उसका तनु विलयन (0-1 से 10%) सूक्ष्म व पतली नली (syringe) की सहायता से विलायक में प्रविष्ट कराया जाता है।
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जैसे-जैसे विलयन नीचे की तरफ कॉलम में बहता है, अतिरिक्त विलायक उसके पीछे से प्रवाहित करते जाते हैं। विलायक के बहाव की दर 0.5 से 9.9 मि.ली. प्रति मिनट होती है। विलायक के साथ-साथ पृथक्कारी मिश्रण भी गुरुत्व (gravity) के कारण नीचे की तरफ चलता है।
मिश्रण में उपस्थित घटकों में जिसकी आकर्षण क्षमता (affinity) स्थिर प्रावस्था के लिये अधिक होती है वह पहले रूक (retain) जाता है और कम (affinity) वाला बाद में रुक जाता है।
जैसे-जैसे घटक पृथक् होते जाते हैं उनका रुकाव समय, संसूचक से होते हुये रिकॉर्डर में रिकॉर्ड होता है और कम्प्यूटर से ग्राफ बनता है जसमें प्रत्येक घटक का एक-एक पीक या सिग्नल बनता है, पृथक्करण R अर्थात् रुकाव समय (retention time) के आधार पर होता है ।
निक्षालन (elution) करके प्रत्येक पृथक्कारी पदार्थ की पहचान TLC या अन्य विधियों द्वारा कर ली जाती है।
उपकरण (Apparatus) –
चित्र में दर्शाये अनुसार उपकरण व्यवस्थित किये जाते हैं।

1. कॉलम या स्तंभ (Column) –
कॉलम या स्तंभ में भराव के लिये काँच की गोली (30-50um ) जो कि पेलीसेलर (Pellicellar bead) कहलाते हैं, का उपयोग करते हैं, इन पर सरंध्र पदार्थ की पतली परत चढ़ी होती है, जो स्थिर प्रावस्था का कार्य करती है।
सामान्यतः सिलिका जेल का उपयोग कॉलम में भराव के लिए करते हैं जो स्थिर प्रावस्था होती है।
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2. विलायक (Solvent)—
HPLC में विलायक चल प्रावस्था होती है जिसका चयन नमूने या मिश्रण में उपस्थित रासायनिक पदार्थ की प्रकृति के आधार पर करते हैं । विलायक ध्रुवीय (polar) या अध्रुवीय (nonpolar) दोनों प्रकृति का हो सकता है।
3. संसूचक (Detector ) –
HPLC उपकरण में रिफ्रेक्टिव इंडेक्स (RI) या पराबैंगनी (UV) संसूचकों (Detector) का उपयोग किया जाता है। पराबैंगनी संसूचक में कम दबाव वाले मर्करी लैंप का उपयोग किया जाता है।
कुछ उपकरणों में Flame ionization detector का भी उपयोग किया जाता है।
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4. अभिलेखक (Recorder ) –
संसूचक से प्राप्त सिग्नल अभिलेखक के द्वारा चित्र में दर्शाये अनुसार बनाये जाते हैं । प्रत्येक पीक (Peak) एक यौगिक या अवयव को दर्शाती है।
प्राप्त पीक की संख्या से मिश्रण में कितने यौगिक या घटक उपस्थित हैं पता चलता है। गणना के आधार पर पीक की ऊँचाई व क्षेत्रफल से नमूने में कितनी मात्रा में यौगिक या घटक है का पता लगाया जा सकता है।
HPLC के अनुप्रयोग (Applications of HPLC)

HPLC क्रोमेटोग्राफी का मुख्य उद्देश्य मिश्रण में उपस्थित पदार्थ या घटक की पहचान करना, मात्रा ज्ञात करना, शोधन करना है। यह तकनीक बहुत ही सरल, विशिष्ट, तीव्र, परिशुद्ध एवं यथार्थ है।
अतः इसका प्रयोग फार्मास्यूटिकल उद्योग (Pharmaceutical company) में बहुतायत से किया जाता है, जहाँ दवाओं के घटकों की परिशुद्धता की जाँच की जाती है।
वैश्लेषिक रसायन एवं जैव रसायन में भी इसका उपयोग लगभग समान गुणधर्म वाले यौगिकों के पृथक्करण व पहचान में किया जाता है।
उदाहरण –
हाइड्रॉक्सीकृत एरोमेटिक यौगिकों के मिश्रण में से HPLC द्वारा निम्न क्रोमेटोग्राम प्राप्त होता है जो मिश्रण में पाँच यौगिकों की उपस्थिति दर्शाता है। इनके tR के मान को ज्ञात से तुलना करके यौगिक की पहचान कर सकते हैं।
