Alkene By Kumar Santosh Sir 100% success
Alkene By Kumar Santosh Sir.एल्कीन्स हाइड्रोकार्बन होते हैं,जिनके अणु में कार्बन-कार्बन डबल बांड होता हैं। इनका जनरल फार्मूला CnH2n (n=कार्बन एटम की संख्या) होता हैं।इसमें एल्केन (CnH2n+2)की तुलना दो हाइड्रोजन कम होते हैं। इसलिए इनको असंतृप्त हाइड्रोकार्बन से नामित किया गया हैं।
एल्कीन क्या है
क्लास एल्कींस सामान्यत:ओलेफिंस (olefins लैटिन ole-um=oil;ficare =to make) के नाम से जाने जाते हैं। क्योंकि निम्न सदस्य क्लोरीन या ब्रोमीन के साथ अभिक्रिया करके तैलीय उत्पाद बनाते हैं।
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एल्कीन बनाने की विधि
एल्कीन बनाने के अधिकांश विधि में दो सटे हुए कार्बन परमाणुओं से परमाणुओं या समूहों का विलोपन शामिल है।
(1) अल्कोहोल्स के डिहाइड्रेशन द्वारा:-
जब अल्कोहल को सल्फुरिक अम्ल की प्रेसेंस में हीट किया जाता हैं तो वाटर के अणु का विलोपन होता हैं और एल्कीन बनता हैं।
अल्कोहोल्स के डिहाइड्रेशन के केस में 3° अल्कोहल >2°अल्कोहल >1°अल्कोहल
असममित सेकेंडरी या तृतीयक अल्कोहल के विलोपन दो प्रकार से होता हैं,और मिक्स्ड अल्कीन बनता हैं। उदाहरण के लिए 2 बुटेनॉल का डिहाइड्रेशन 2 ब्यूटीन (मेजर प्रोडक्ट) और 1 ब्यूटीन (माइनर प्रोडक्ट) देता हैं।
(2) एल्कील हैलाईड़ के डीहाइड्रोहेलोजेनेसन द्वारा
जब एल्कील हैलाईड़ को सोडियम के अल्कोहलिक विलियन या पोटेशियम हाईड्राऑक्साइड के साथ गर्म किया जाता हैं,तो हाइड्रोजन हैलाईड़ का अणु विलोपित होता हैं और एल्कीन बनता हैं।यहाँ Saytzeff rule का पालन होता हैं।
एल्कील हैलाईड़ के डीहाइड्रोहेलोजेनेसन के केस में इस प्रकार सीक्वेंस होता हैं :-
3°एल्कील हैलाईड़ >2°एल्कील हैलाईड़>1°एल्कील हैलाईड़
(3) विसिनल डाईहैलाईड़ के डीहेलोजेनेसन द्वारा
किसी यौगिक में दो सटे हुए कार्बन एटम से दो हलोजन एटम का जुडे हो तो उसे विसिनल डाईहैलाईड़(विस-डाईहैलाईड़) कहा जाता हैं।ऐसे विसिनल डाईहैलाईड़ को एथिल अल्कोहल की उपस्थिति में जिंक डस्ट के साथ गर्म किया जाता हैं तो एल्कीन बनता हैं।
(4) एल्काइन्स के कंट्रोल्ड हाइड्रोजेनेसन द्वारा
जब एल्काइन्स लिंडलर कैटेलिस्ट (Lindlar’s catalyst) की उपस्थिति में हाइड्रोजन से रियेक्ट करता हैं,तो एल्कीन प्राप्त होता हैं। लिंडलर कैटेलिस्ट (Pd विषेला और CaCO3 +क़ुइनोलीन )unsymmetrical alkane
(5) एल्केन के क्रेकिंग द्वारा
एल्केन को जब 500-700 °C तापमान पर एयर की एब्सेंस में गर्म किया जाता है तो यह विघटित होकर लोअर मॉलिक्यूलर वेट अल्कीन,एल्केन और हाइड्रोजन देता हैं ।
फिजिकल प्रॉपटी
(1) पहले तीन अल्कींस (एथींस,प्रोपीन,और ब्यूटीन) सामान्य ताप पर गैसेस हैं।नेक्स्ट 14 सदस्य लिक्विड हैं 18 कार्बन से अधिक मॉलिक्यूल ठोस हैं।
एथीन (प्लेअजेंट(सुहानी) गंध )को छोड़कर सभी रंगहीन,गंधहीन होते हैं।
(2) एल्कीन वाटर में कम घुलनशील होते हैं,लेकिन आर्गेनिक साल्वेंट में आसानी से घुलनशील होते हैं।
(3) एक समजातीय श्रेणी में इनके बड़ते आणविक भार के साथ बोइलिंग पॉइंट,मेल्टिंग पॉइंट और स्पेसिक ग्रेविटी बढती हैं।
केमिकल प्रॉपर्टी
एल्कीन, एल्केन से ज्यादा क्रियाशील होता हैं,क्योंकि
डबल बांड के Pi बंध कार्बन केन्द्रक से दुरी पर स्थित होते हैं इस लिए यह मजबूती से नहीं बंधे होते हैं।
एटॉमिक ऑर्बिटल के अतिव्यापन से जो Pi बंध बनता हैं वह इतना प्रभावी नहीं होता हैं जितना सिग्मा बांड में होता हैं।
इस रीति से Pi बंध सिग्मा बंध e से कमजोर होता हैं ।और आसानी से ब्रेक हो जाता हैं।
एल्कीन की मोस्ट इम्पोर्टेन्ट रिएक्शन एडिसन रिएक्शन होती हैं। इस रिएक्शन में Pi बांड ब्रेक होता हैं।और यह दो सिग्मा बांड के द्वारा रिप्लेस होता हैं।
उदाहरण के लिए जब एल्कीन E—Nu के साथ रियेक्ट करता हैं,तब एल्कीन का कार्बन-कार्बन Pi बांड ब्रेक होता हैं और न्यू C–E सिग्मा बांड और C–Nu सिग्मा बांड बनता हैं।
कार्बन-कार्बन दोहरे बंधन में योगात्मक क्रियाविधि
उपर मेंशन किया गया हैं कि डबल बांड का Pi इलेक्ट्रान कार्बन केन्द्रक से मजबूती से नहीं बंधा होता हैं। कार्बन-कार्बन डबल बांड इलेक्ट्रान रिच होता हैं। यह एल्क्ट्रोफिलिक रेअजेंट को इलेक्ट्रान सप्लायर करने की तरह एक्ट करता हैं।
यहाँ हम जानते हैं कि एल्क्ट्रोफाइल इलेक्ट्रान की कमी वाला ग्रुप या स्पीशीज होता हैं।यह कार्बन से सहसंयोजक बंध बनाने के लिए पॉजिटिव आयन रखने में सक्षम होते हैं ।
आइये अब हम कार्बन- कार्बन डबल बांड में एक रेअजेंट E-Nu को जोड़ने पर विचार करें ।यह कुछ स्टेप में होता हैं ।
स्टेप 1
इस स्टेप में रेअजेंट E-Nu आयनीकृत होकर पॉजिटिव आयन (इलेक्ट्रो फाइल ) और नेगेटिव आयन (नुक्लियोफाइल ) देता हैं।
स्टेप 2
इस स्टेप में एल्क्ट्रोफाइल (E+) कार्बन-कार्बन डबल बांड पर अटैक करके एक कार्बन एटम के साथ सहसंयोजक बंध बनाता हैं ।दूसरा कार्बन एटम पॉजिटिव चार्ज हो जाता हैं।परिणामस्वरूप कार्बोनियम आयन का फार्मेशन होता हैं।
स्टेप 3
इस स्टेप में नुक्लियोफाइल, कार्बोनियम आयन पर अटैक करके योगात्मक प्रोडक्ट बनाता हैं।
क्योंकि योगात्मक अभिक्रिया एल्क्ट्रोफाइल (E+) के द्वारा शुरू होती हैं,इन्हें एल्क्ट्रोफिलिक योगात्मक अभिक्रियाएँ कहते हैं।
E+ आमतौर पर H+,Br+,or Cl+ होते हैं ।
:Nu आमतौर पर Br-,Cl-,OH-,होते हैं ।
एल्कीन की कुछ इम्पोर्टेन्ट रिएक्शन का नीचे वर्णन दिया हैं :-
(1) हाइड्रोजन का योग(mechanism of hydrogenation of alkene)
एल्कीन (प्रेशर में) Ni,Pt,,या Pd कैटेलिस्ट की प्रेसेंस में हाइड्रोजन को ऐड करके संतृप्त हाइड्रोकार्बन उत्पादित करते हैं। इस प्रकार से होने वाली हाइड्रोजनीकरण रिएक्शन को उत्प्रेरक हाइड्रोजनीकरण कहते है।
(2) halogenation of alkane
हलोजेंस (Cl2,Br2) एल्कीन से अक्रिय साल्वेंट (कार्बन टेट्रा क्लोराइड) की उपस्थिति रिएक्शन करके डाईहेलोजन व्युत्पन्न बनाता हैं ।
क्रियाविधि
उपर दी रिएक्शन की क्रियाविधि निम्नलिखित स्टेप में होती हैं।
स्टेप 1
इस स्टेप में Br2 pi इलेक्ट्रान क्लाउड के कारण Br+(ब्रोमोनियम आयन ) इलेक्ट्रोफाइल और ब्रोमाइड आयन (Br-) नुक्लियोफाइल में ब्रेक होता हैं।
Br2 …………>Br+(ब्रोमोनियम आयन) + Br-(ब्रोमाइड आयन)
स्टेप 2
इस स्टेप में Br+[ब्रोमोनियम आयन(इलेक्ट्रोफाइल)] डबल बांड पर अटैक करके कार्बोनियम आयन बनाता हैं ।
स्टेप 3
नेगेटिव ब्रोमाइड (Br-) कार्बोनियम आयन पर अटैक करके डाईहेलोजन व्युत्पन्न बनाता हैं।
प्रोपीन का हलोजन से रिएक्शन इसी प्रकार से होता हैं।
(3) हलोजेंस एसिड का योग(addition of halogen acid)
एल्कीन, हलोजन एसिड (H-Cl,H-Br,या HI) से रिएक्शन करके अल्काइल हैलाईड देता हैं ।
क्रियाविधि
उपर दी रिएक्शन की क्रियाविधि निम्नलिखित स्टेप में होती हैं।
स्टेप 1
इस स्टेप में H-Br आयनित होकर H+प्रोटोन (इलेक्ट्रोफाइल) और ब्रोमाइड आयन Br-(नुक्लियोफाइल) देता हैं।
स्टेप 2
इस स्टेप में H+प्रोटोन (इलेक्ट्रोफाइल)डबल बांड पर अटैक करता हैं और एथिल कार्बोनियम आयन बनाता हैं।
स्टेप 3
इस स्टेप में ब्रोमाइड आयन Br-(नुक्लियोफाइल) कार्बोनियम आयन पर अटैक करता हैं, जिससे एथिल ब्रोमाइड बनता हैं।
जब एल्कीन डबल बांड के प्रति सममित होता हैं जैसे ईथीलीन में होता हैं।ऐसी कंडीशन में सेम प्रोडक्ट बनेगा चाहे H-Br केसे भी ऐड हो।
यदि एल्कीन असममित हो तो दो विकल्प पोसिबल हैं।उदाहरण के लिए प्रोपीन H-Br के साथ दो प्रकार से रियेक्ट करता हैं।
प्रायोगिक रूप से पाया हैं कि मेजर प्रोडक्ट आइसोप्रोपिल ब्रोमाइड बनता हैं ।
बहुत सी एडिसन रिएक्शन का अध्यन करने के बाद रुसी केमिस्ट व्लादिमीर मार्कोनिकॉफ ने निम्नलिखित नियम को सामने रखा:
मार्कोनिकॉफ रूल:-
जब असममित अभिकर्मक जैसे H-Br असममित एल्कीन जैसे प्रोपीन से रिएक्शन करता हैं तो असममित अभिकर्मक(H-Br) का पॉजिटिव पार्ट (H+) डबल बोंडेड प्रोपीन के उस कार्बन से जुड़ता हैं जहाँ पर ज्यादा संख्या में हाइड्रोजन जुडा होता हैं ।
क्रियाविधि:-
मार्कोनिकॉफ रुल को मॉडर्न मेकेनिस्टिक थ्योरी के टर्म में एक्सप्लेन कर सकते हैं।
इसके लिए H-Br का एडिसन प्रोपीन से रिएक्शन को कंसीडर करते हैं ।इस रिएक्शन की मैकेनिज्म में यह स्टेप इन्वाल्व होती हैं :-
स्टेप 1
इस स्टेप में H-Br आयनित होकर H+प्रोटोन (इलेक्ट्रोफाइल) और ब्रोमाइड आयन Br-(नुक्लियोफाइल) देता हैं।
स्टेप 2
इस स्टेप में H+प्रोटोन (इलेक्ट्रोफाइल)डबल बांड पर अटैक करता हैं और अधिक स्थायी कार्बोनियम आयन बनाता हैं।
स्टेप 3
इस स्टेप में ब्रोमाइड आयन Br-(नुक्लियोफाइल) अधिक स्थायी सेकेंडरी कार्बोनियम आयन पर अटैक करता हैं, जिससेआइसोप्रोपिल ब्रोमाइड बनता हैं।
परऑक्साइड प्रभाव:-
1993 में एक अमेरिकन केमिस्ट एम.एस.खराश ने खोजा कि जब H-Br का एडिसन असममित एल्कीन से एक आर्गेनिक परऑक्साइड (R-O-O-R) की प्रेसेंस में कराया,तो देखा कि एडिसन रिएक्शन मार्कोनिकॉफ रुल के विपरीत होती हैं।
H-Br का एंटी-मार्कोनिकॉफ एडिसन (addition) की यह परिघटना परऑक्साइड की प्रेसेंस के कारण होती हैं,परऑक्साइड प्रभाव (Peroxide Effect) के नाम से जानी जाती हैं।
क्रियाविधि:-
यहाँ पर प्रोपीलीन का परऑक्साइड की प्रेसेंस में H-Br से एडिशन एक फ्री-रेडिकल मैकेनिज्म के द्वारा होती हैं ।इसमें कुछ स्टेप इन्वाल होती हैं।
स्टेप 1
इस स्टेप में परऑक्साइड वियोजित होकर एल्कोक्सी फ्री रेडिकल देता हैं।
R-O-O-R ———–>2R—O.
स्टेप 2
एल्कोक्सी फ्री रेडिकल H-Br पर अटैक करके ब्रोमिन एटम(फ्री रेडिकल ) बनता हैं।
R—O. + H : Br ——> R—OH + Br.
स्टेप 3
ब्रोमीन फ्री रेडिकल प्रोपीलीन पर अटैक करके प्राइमरी फ्री रेडिकल और सेकेंडरी फ्री रेडिकल देता हैं।
स्टेप 4
अधिक स्थायी 2° फ्री रेडिकल H-Br पर अटैक करके एंटी-मार्कोनिकोफ प्रोडक्ट और ब्रोमीन एटम बनाते हैं। ब्रोमीन परमाणु चरण 3 पर वापस चला जाता है।
नोट:-
H-Cl और HI परऑक्साइड की प्रेसेंस में एंटी-मार्कोनिकोफ़ प्रोडक्ट नहीं देता हैं।इसका कारण यह हैं कि-
(a) H-Cl बांड की एनर्जी (103 Kcal/mole) यह H-Br बांड एनर्जी (87Kcal/mole) की तुलना में स्ट्रांगर होती हैं।ये अल्कोक्सी फ्री रेडिकल से peroxide की उपस्थिति में टूटती नहीं हैं ।
(b) HI बांड (71 Kcal/mole ) होती हैं जो H-Br बांड एनर्जी (87Kcal/mole) की तुलना में कमजोर होती हैं।ये अल्कोक्सी फ्री रेडिकल से peroxide की उपस्थिति में टूटती हैं।लेकिन यह अल्कीन के डबल ओंद पर अटैक करने से पहले I आपस में कंबाइन होकर आयोडीन मॉलिक्यूल बना लेते हैं ।
(4) हाइपोहेलस का योग (Addition of Hypohalous acids):-
एल्कीन,हाइपोहेलस से रिएक्शन करके हेलोहाईड्रीन देता हैं।असममित एल्कीन के केस में मार्कोनिकोफ़ रूल का पालन होता हैं।इस एसिड में हेलोजेन पॉजिटिव पार्ट होता हैं और OH नेगेटिव पार्ट होता हैं ।
(5) mechanism of hydration of alkene-
एल्कीन,सल्फुरिक एसिड से रिएक्शन करके एल्कील हाइड्रोजन सल्फेट प्रोडूस होता हैं।unsymmetrical alkene example के केस में मार्कोनिकोफ़ रूल का पालन होता हैं। एल्कील हाइड्रोजन सल्फेट जल अपघटन पर अल्कोहल प्राप्त होता हैं।
(6) एल्किलेसन(Alkylation):-
कुछ एल्कीन ,H2SO4 or HF की प्रेसेंस में एल्कीन से ऐड होता हैं। इस रिएक्शन का उपयोग आइसो ओक्टेन का निर्माण में किया जाता हैं।
(7)हाइड्रो बोरेसन(Hydroboration);-
डाईबोरेन (B2H6), एल्कीन के साथ रिएक्शन करके ट्राई एल्कील बोरेन बनाता हैं। डाईबोरेन, बोरेन(BH3) के रूप में ऐड होता हैं। BH3 का पॉजिटिव पार्ट बोरान होता है और नेगेटिव पार्ट हाइड्रोजन होता हैं।
ट्राई एल्कील बोरेन, प्राइमरी अल्कोहल के संश्लेषण में यूज़ होता हैं ।
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