20-20 MAJOR CHEMISTRY PRATHAM PAPER
20-20 MAJOR CHEMISTRY PRATHAM PAPER.यह कॉन्टेंट बी.एससी. प्रथम वर्ष केरसायन शास्त्र के मेजर सब्जेक्ट से रिलेटेड हैं.इसमें 20 क्वेश्चन और आंसर दिए गए हैं.जिसे 20-20 नाम दिया हैं.
20-20 MAJOR CHEMISTRY PRATHAM PAPER
क्वेश्चन:-1
असामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को उदाहरन सहित समझाओ .
आंसर :-
असामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास.इस ब्लॉग हम कुछ example के बारे में जानेगे जो जिनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास असामान्य behavior शो करते हैं।ऐसे इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को अपवादिक विन्यास की लिस्ट में रख कर समझेंगे।कुछ अपवादिक विन्यास पोपुअर हैं जिसे हम कई बार देखने को मिलते हैं,जैसे कॉपर और क्रोमियम के विन्यास।
असामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
इस ब्लॉग को समझने के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार से हैं:-
half filled और full filled के ऑर्बिटल के stabilty के दो प्रमुख कारण :-
-
Symmetry:-
यदि कोई upkosh half filled है तो इसका मतलब यह हैं कि उसमे same energy के all ऑर्बिटल में electrons का distribution symmetrical होता हैं जबकि partial रूप से भरे हुए orbitals में asymmetric distribution होने से स्टेबिलिटी में कमी आ जाती हैं।
-
energy exchange की हाई possibility:-
same energy वाले ऑर्बिटल में बीच electrons आदान-प्रदान होता रहता हैं।इस प्रोसेस में कुछ energy फ्री होती हैं और सिस्टम stability प्राप्त करता हैं।upkosh के orbitals की full filledया half filled स्टेज में electrons के लेन-देन की possibility अधिक रहती हैं।इसलिए ऐसे ऑर्बिटल हाईएस्ट स्टेबिलिटी वाले होते हैं।
कॉपर और क्रोमियम के विन्यास:-
औफ़ बौऊ के नियम अनुसार
24Cr=1s2,2s2p6,3s23p6,4s23d4
29Cu=1s2,2s2p6,3s23p6,4s23d9
किन्तु इनके ओरिजिनल इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ये हैं:-
24Cr=1s2,2s2p6,3s23p6,4s13d5
29Cu=1s2,2s2p6,3s23p6,4s13d10
इन विन्यासों से स्पस्ट होता हैं कि electrons के फिल के सामान्य क्रम (औफ़ बौऊ सिधांत )मे दो अनियमितताए पाई जाती हैं।कॉपर और क्रोमियम के विन्यास रूल के अनुसार अपेक्षित विन्यास से भिन्न होते हैं।
स्पस्टीकरण:-
उपर दिए example में देखा आपने कि कॉपर और क्रोमियम के 3d orbitals में क्रमश:4 और 9 के स्थान पर 5 और 10 electron होते हैं।इसका एक्सप्लेनसन इस प्रकार हैं कि उच्च उपकोशो में (यहाँ 4s व 3d) दो consecutive(क्रमागत) उपकोशो के बीच energy का डिफरेंस बहुत कम होता हैं।
और कोई भी upkosh तभी स्टेबल होता हैं जब वह completely fill हो जाये या determine संख्या से आधे electron से भर जाये।
अभी यह फिनिश नहीं हुआ हैं इसमें अभी बहुत से example ऐड करना बाकि हैं जो में कर दूंगा आप अपनी query कमेन्ट बॉक्स में कर सकते हैं.
क्वेश्चन:-2
परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखने के नियम.
आंसर :-
परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास-Parmanuo ke electronic configuration.यदि किसी एलिमेंट का atomic number मालूम हो तो हुंड के नियम,पाउली का अपवर्जन नियमऔर ऑफ बौऊ नियम की हेल्प से उसका पूरा इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखा जा सकता हैं।
किसी तत्व का इलेक्ट्रॉन विन्यास (electronic configuration of elements)बताता है कि इलेक्ट्रॉनों को उनके परमाणु कक्षाओं में कैसे वितरित किया जाता है। परमाणुओं के इलेक्ट्रॉन विन्यास एक मानक संकेतन का पालन करते हैं जिसमें सभी इलेक्ट्रॉन युक्त परमाणु upkosh एक क्रम में रखे जाते हैं। उदाहरण के लिए, सोडियम का इलेक्ट्रॉन विन्यास 1s22s22p63s1 है।
परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास-Parmanuo ke electronic configuration
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखने के नियम(what is electronic configuration)
(1) electrons की संख्या 2n2 होती हैं इसमें n principal क्वांटम संख्या हैं।
मुख्य उर्जा स्तर n | प्रति ऊर्जा स्तर 2n2 . अनुमत इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या |
1 | 2 x (1)2=2 |
2 | 2 x (2)2=8 |
3 | 2 x (3)2=18 |
4 | 2 x (4)2=32 |
5 | 2 x (5)2=50 |
6 | 2 x (6)2=72 |
how to write electronic configuration
(2) upkosh (s,p,d,f) electrons की अधिकतम संख्या 2(2l+1)
l का मान upkosh (s,p,d,f) के लिए -1,0,+1
(s,p,d,f) upkosh में अधिकतम electron 2,6,10 ,14
(3) आर्बिटल में electron भरने का क्रम एक नियम पर आधारित होता है।
(i)-जिसमें n+l का मान न्यूनतम होता है electron पहले उस ऑर्बिटल में प्रवेश करता है।
दो ऑर्बिटल के लिए (n+l) का मान एक हो तो पहले electronउस ऑर्बिटल में प्रवेश करता ह,जिसमे n का मान कम होता हैं।
(ii)-हुंड का अधिकतम बहुलता का नियम का अर्थ यह है कि किसी भी upkosh केorbital में इलैक्ट्रांस का युग्मन तब तक नहीं होता जब तक कि उस upkosh के समस्त कक्षकों में एक-एक इलेक्ट्रान नहीं चला जाता है।
(iii)-किसी एक orbital में अधिक से अधिक दो electron रह सकते हैं।और spin भी दो टाइप की होती हैं।एक ही ऑर्बिटल में रहने वाले दो electrons के spin opposite डायरेक्शन में होते हैं।
(4) पार्शियल रूप से भरे हुए upkosh के कंपैरिजन में वह upkosh अधिक स्टेबल होता है जिसके ऑल आर्बिटल half filled या full filled होते हैं। इलेक्ट्रॉन इस प्रकार भरे जाते हैं किउपकोष स्टेबिलिटी प्राप्त करें।
(5) orbitals के रूप में इलेक्ट्रॉनिक विन्यास write करते समय orbitals को एक round या बॉक्स के द्वारा show करते हैं तथा इसमें present electron को उसके spin की डायरेक्शन तीर के द्वारा show करते हैं-
अभी यह फिनिश नहीं हुआ हैं इसमें अभी बहुत से example ऐड करना बाकि हैं जो में कर दूंगा आप अपनी query कमेन्ट बॉक्स में कर सकते हैं.
क्वेश्चन:-3
Aufbau Principle और इसकी Limitations।
आंसर :-
Aufbau Principle और इसकी Limitations। Atomsऔर इसके सभी कणों का अध्ययन physics ya chemistry जैसे science के लिए बहुत रुचिकर रहा है। कई विधियां विकसित की गई हैं।जो केवल सैद्धांतिक प्रतीत होने के बावजूद इन क्षेत्रों में जांच की सुविधा प्रदान करती हैं। इस प्रकार Aufbau Principle उत्पन्न होता है।जो इलेक्ट्रॉनों के आसपास अपनी प्रक्रियाओं को केंद्रित करता है।
यह अभिधारणा घोषणा करती है कि periodic table के एक elements के electronic configuaration का सैद्धांतिक रूप से अनुमान लगाना संभव है।
यद्यपि यह भौतिक विज्ञानी niels Bohr द्वारा प्रस्तावित एक योजना थी, इसे जर्मन Aufbauprinzip से Aufbau नाम मिला।
जिसका अर्थ है निर्माण सिद्धांत (building-up principle)।
और यह है कि इस प्रमेय को लागू करने के लिए यह एक परमाणु की परतों और उसमें मौजूद इलेक्ट्रॉनों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक तालिका बनाने के बारे में है।
Aufbau Principle और इसकी Limitations
आदि में जो स्थापित है, उसके अनुसार विचार है कि परमाणु क्या होगा। और इसे लेयर्स और सबलेयर्स के माध्यम से दर्शाया जाता है।
लेकिन इसे प्राप्त करने के लिए, यह आवश्यक है कि इसके आवेदन को दो अन्य अभिधारणाओं द्वारा भी समर्थित किया जाए:Pauli exclusion principle और hund adhikatam bahulata niyam।
What is Aufbau Principle
Aufbau Principle Chemistry इलेक्ट्रॉन विन्यास के सिद्धांत पर आधारित है।
इसके माध्यम से यह घोषित किया जाता है कि जिस प्रकार परमाणु के नाभिक में इलेक्ट्रॉनों का समावेश होता है, वैसा ही इलेक्ट्रॉनों के साथ भी होगा ताकि तत्व के आवेश में संतुलन बना रहे।
इस तरह, परमाणु की कक्षाओं में उनका पता लगाने में सक्षम होने के लिए कुछ नियम स्थापित किए जाते हैं।
इस सिद्धांत को मैडेलुंग के नाम से भी जाना जाता है।
यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस पूरी प्रक्रिया में इसकी तुलना एक प्याज जैसे परमाणु से की जा सकती है, जिसमें कई परतें होती हैं। और इनके भीतर सबलेयर्स हैं।
ऑर्बिटल्स को भरना शुरू करने से पहले, दो सिद्धांतों का ज्ञान होना चाहिए: Pauli exclusion principle और hund adhikatam bahulata niyam।
यह भरने के नियमों को स्थापित करने में मदद करता है।
जिस क्रम में प्रत्येक इलेक्ट्रॉनों को रखा जाएगा वह बढ़ता रहेगा।
और उपकोशों के लिए, इलेक्ट्रॉनों को न्यूनतम ऊर्जा मान को ध्यान में रखते हुए स्थित किया जाएगा।
तालिका को असेंबल करने के बाद तिरछे रेखाएँ खींची जाती हैं, जो परमाणु के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को परिभाषित करती हैं।
Aufbau Principle की discovery
जब औफबौ पद्धति का उल्लेख किया जाता है, तो इसका नाम जर्मन मूल के होने के कारण सामने आता है।
और यह है कि इसकी उत्पत्ति aufbau rule in chemistry से हुई है, जिसका स्पेनिश में अनुवाद करने का अर्थ है निर्माण की शुरुआत।
हालाँकि, इसका विकास एक डेनिश भौतिक विज्ञानी, niels Bohr के हाथों में था, जिन्होंने परमाणुओं की प्रकृति और उनकी विशेषताओं के बारे में पूछताछ करने की मांग की थी। फिर भी, इस अभिधारणा का नाम उनके नाम पर कभी नहीं रखा गया।
Aufbau Principle और इसकी Limitations
Bohr ने ERNEST RUTHERFORD के योगदान को परिष्कृत करने की मांग की।
इससे उसने कुछ परिसर स्थापित किए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि परमाणु का केंद्रक इलेक्ट्रॉनों से घिरे केंद्र में रहता है। ये, बदले में, energy के loss या वृद्धि के कारण स्तरों को बदलते हैं।
यह भी ध्यान में रखा गया था कि एक स्तर की छलांग होने के लिए, समीकरण 2n 2 को पूरा करना होगा।
इसका मतलब है कि कक्षा में स्थित इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या Orbitकी संख्या के वर्ग के दोगुने के बराबर होगी।
बाद में, यह निर्धारित किया गया कि प्रत्येक इलेक्ट्रॉन में चार Quantum Numbers होती हैं। प्रिंसिपल (n) है, जो नाभिक से दूरी को परिभाषित करता है। दूसरा अज़ीमुथल (l) है, जो उस कक्षीय को निर्धारित करता है जिसमें वह स्थित है।
एक Magnetic quantum number (m), जो कक्षीय के माध्यम से पथ की पहचान करती है। और अंत में, एक स्पिन संख्या s, जो धनात्मक या ऋणात्मक हो सकती है, और जिसका मान ½ है।
इन सभी कथनों को ध्यान में रखते हुए, यह स्थापित करना संभव है कि जब दो इलेक्ट्रॉनों का एक ही प्रक्षेपवक्र होता है, तो उनके पास समान चुंबकीय संख्या या स्पिन संख्या नहीं होती है।
निष्कर्ष के रूप में, यह निष्कर्ष निकाला गया कि दो इलेक्ट्रॉनों के लिए समान कक्षीय स्तर साझा करना संभव है।
लेकिन बदले में, ऊर्जा के स्तर को उप-स्तरों में विभाजित किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी कक्षाएँ होती हैं। ये अपनी संरचना में केवल एक जोड़ी इलेक्ट्रॉनों को रखने में सक्षम हैं।
Pauli exclusion principle और hund adhikatam bahulata niyam का Aufbau Principle के साथ relation
Aufbau rule को लागू करने के लिए, अन्य सिद्धांतों को ध्यान में रखना आवश्यक है।Pauli exclusionविधि से प्रारंभ करके, कक्षकों के उपकोश निर्धारित किए जाते हैं।
इस सिद्धांत के भीतर एक कथन भी है, जो हमें परमाणु के विन्यास को बेहतर ढंग से समझने की अनुमति देता है। किसी भी इलेक्ट्रॉन में दूसरे के समान क्वांटम संख्याएँ नहीं होती हैं।
इस मामले में, यह संभव नहीं है कि दो इलेक्ट्रॉनों को एक ही नकारात्मक या सकारात्मक स्पिन के साथ कॉन्फ़िगर किया गया हो।
एक से अधिक इलेक्ट्रॉनों के लिए स्पिन क्वांटम संख्या भिन्न होनी चाहिए। और जब वे एक ही कक्षक में हों, तो उन्हें अपने चक्रों को जोड़ना होगा। यह सब सिद्धांत hund adhikatam bahulata niyam द्वारा व्यवहार में लाया जाता है।
तब यह स्थापित किया जाता है कि इस विधि के निर्देशों के अनुसार कक्षकों को भरा जाएगा।
सबसे पहले, यह इस तथ्य से नियंत्रित होता है कि कोई भी कक्षीय स्पिन की दो दिशाओं की गणना नहीं करता है जब तक कि चुंबकीय क्वांटम संख्याएं एक ही उपकोश की न हों।
इनमें से कम से कम एक होना चाहिए। यहां से, यह सबसे कम ऊर्जा स्तर वाले से शुरू होता है।
यह 1s कक्षक से प्रारंभ होता है और इसमें अधिकतम दो इलेक्ट्रॉन होने चाहिए। यह सब क्वांटम संख्या l को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। अगला 2s कक्षीय होगा, और अधिकतम दो इलेक्ट्रॉनों के साथ भी।यह 2p उपकोश में जाता है।
और जिसे तीन कक्षकों में विभाजित किया जाता है।
ये अधिकतम छह इलेक्ट्रॉनों की अनुमति देते हैं, प्रत्येक कक्षीय में दो रखते हैं। लेकिन कुछ के लिए उस अधिकतम संख्या में इलेक्ट्रॉनों तक पहुंचने के लिए, यह आवश्यक है कि सभी में कम से कम एक हो।
अत: परमाणु के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को समझने के लिए क्रमशः सारणी भर दी जाएगी।
Aufbau Principle Limitations
संक्रमण धातुओं और लैंथेनाइड्स और एक्टिनाइड्स जैसे तत्वों के मामले में, औफबौ सिद्धांत उनके इलेक्ट्रॉनिक कॉन्फ़िगरेशन को जानने के लिए पर्याप्त नहीं है।
इसका कारण यह है कि ns और (n-1) d ऑर्बिटल्स में कम ऊर्जा अंतर होता है।
इस मामले को क्वांटम यांत्रिकी के माध्यम से समझाया गया है। जिसमें कहा गया है कि संभवतः जिस तरह से इलेक्ट्रॉनों की प्रतिक्रिया होती है। वह (n-1) d ऑर्बिटल्स को खराब कर देता है। जबकि ns ऑर्बिटल्स में पाए जाने वाले इलेक्ट्रॉनों को हटा देता है।
क्वेश्चन:-4
हुण्ड का अधिकतम बहुलता का नियम.
आंसर :-
हुण्ड का अधिकतम बहुलता का नियम Chemistry In Hindi ke Anusar।एफ हुंड 1925 में मैं बताया कि किसी उपकोष के आर्बिटल्स में इलेक्ट्रॉन का डिस्ट्रीब्यूशन किस प्रकार होता है। उन्होंने इसके लिए एक नियम प्रतिपादित किया जिसे हुंड का अधिकतम बहुलता का नियम कहते हैं।
हुण्ड का अधिकतम बहुलता का नियम Chemistry In Hindi ke Anusar
यह नियम इस प्रकार से है जहां तक पॉसिबल होता है कि किसी भी उपकोष के डिफरेंट आर्बिटल्स मेंunpaired इलेक्ट्रॉनों की संख्या अधिकतम होती है तथा unpaired इलेक्ट्रॉनों का spin parallal होता है।pauli ka niyam
इस नियम का अर्थ यह है कि किसी भी upkosh केorbital में इलैक्ट्रांस का युग्मन तब तक नहीं होता जब तक कि उस upkosh के समस्त कक्षकों में एक-एक इलेक्ट्रान नहीं चला जाता है।
इसे सरल शब्दों में इस प्रकार समझ सकते हैं -मानो कि एक हॉस्टल में तीन रूम(101,102,103) खाली बचे हैंऔर उसमे हर एक रूम में दो स्टूडेंट रह सकते हैं।तीन स्टूडेंट आते हैं।
तीनो स्टूडेंट को एक -एक रूम दे दिया जाता हैं।एक स्टूडेंट को 101,दुसरे स्टूडेंट को 102,और तीसरे स्टूडेंट को 103 दे दिया जाता हैं।ये एक स्अटेबल पोजीशन समझ लो तीनो को comfortable हो जाता हैं।
पहले आयो पहले पायो।अब यदि एक और स्टूडेंट आता हैं,तो हम जानते हैं कि एक रूम में दो स्टूडेंट रह सकते हैं।
तो इस चोथे स्टूडेंट को 101 रूम वाले स्टूडेंट के साथ रूम शेयर कराया जाता हैं अत:उसे 101 रूम मिल जाता हैं।उसी प्रकार से अन्य दो आने वाले स्टूडेंट को क्रमश: पांचवे स्टूडेंट को 102 के साथ रूम शेयर करना पड़ता है। और छठे स्टूडेंट को 103 के साथ शेयर करना पड़ता।
ऐसा ही p upkosh में होता हैं।यहाँ पर तीन ऑर्बिटल हैं इसमें क्रम से एक ऑर्बिटल में पहले एक electron फिर दूसरा electronनेक्स्ट ऑर्बिटल में फिर तीसरा electron तीसरे ऑर्बिटल में एक sequence में fill होते है फिर चोथा electron पहले वाले ओर्बिटल में जाता हैं ।यही क्रम सभी upkosh में apply होते हैं।
हुण्ड का अधिकतम बहुलता का नियम Chemistry In Hindi ke Anusar
ऊपर दिए उदाहरन अनुसार एफ हुंड द्वारा चार upkosh है। s,p,d एंड f
s upkosh में1 ऑर्बिटल होता हैं :-इसमें दो electron रह सकते हैं।और दोनों की spin opposite होती हैं एक क्लॉक वाइज दूसरी spin anticlockwise होती हैं ।
p upkosh में 3 ऑर्बिटल होता हैं
d upkosh में5ऑर्बिटल होता हैं
f upkosh में 7 ऑर्बिटल होता हैं
क्वेश्चन:-5
Pauli ka Apvarjan ka Sidhant/पाउली का अपवर्जन का नियम।
आंसर :-
Pauli ka Apvarjan ka Sidhant/पाउली का अपवर्जन का नियम.ऑस्ट्रिया के वैज्ञानिक डब्ल्यू पावली ने 1926 में एटम्स की डिफरेंट उपकोष में इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या ज्ञात करने एवं उनकी व्यवस्था का डिटरमिनेशन करने के लिए एक नियम प्रतिपादित किया था जो पाउली के अपवर्जन सिद्धांत के नाम से जाना जाता है।
Pauli ka Apvarjan ka Sidhant/पाउली का अपवर्जन का नियम।
इस नियम के अनुसार किसी “एटम् में कोई भी दो इलेक्ट्रॉनों की चारो क्वांटम संख्या एक समान नहीं हो सकती है।” या एक आर्बिटल में केवल दो इलेक्ट्रॉन रह सकते हैं जिनके स्पिन ऑपोजिट डायरेक्शन में होते हैं।
इससे यह प्रतीत होता है कि प्रत्येक इलेक्ट्रॉन दूसरे इलेक्ट्रॉन से कुल एनर्जी में डिफरेंस रखता है। यदि मान लो दो इलेक्ट्रॉन ऐसे हैं जिनके n, lतथा m समान है तो इनके s के मान अवश्य डिफरेंट होंगे ।
एक के लिए s मान +1/2 अर्थात(clockwise) spin और दूसरे के लिए-1/2 मतलब (anticlockwise) स्पिन होगा।
Quantum number | n | l | m | s |
I electron | 1 | 0 | 0 | +1/2
|
II electron | 1 | 0 | 0 | -1/2 |
उदाहरण के लिए L शैल में 8 इलेक्ट्रॉन होते हैं।
इन डिफरेंट इलैक्ट्रांस की क्वांटम नंबर्स निम्नलिखित सारणी में दिए गए हैं।
जिससे प्रतीत होता है कि किन्हीं भी दो इलेक्ट्रॉनों की चारो क्वांटम नंबर्स समान नहीं होती है।
L-shell में विभिन्न इलेक्ट्रानो की संख्याये
n | 2
| |||
l | O या s | 1 या p
| ||
m | 0 | -1 | 0 | +1 |
s | +1/2 -1/2
| +1/2 -1/2
| +1/2 -1/2
| +1/2 -1/2
|
महत्त्व :-
एटम्स के इलेक्ट्रॉन कॉन्फ़िगरेशन के डिटरमिनेशन में यह थ्योरी बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है। इस रूल की हेल्प से यह बताया जा सकता है कि आर्बिटल में अधिक से अधिक दो ही इलेक्ट्रॉन रह सकते हैं।
जिनका स्पिन ऑपोजिट डायरेक्शन में होगा। इनकी हेल्प से किसी मुख्य कोष में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या ज्ञात की जा सकती है। जो कि 2n2 होती है।
उदाहरण:
इस रूल के बेसिस पर स्पष्ट होता है कि क्यों M-शैल में अधिकतम 18इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं।
M-शैल (n=3) के लिए l के तीन 0,1,2 तथा m के कुल 9 मान् 0,-1,0+1,-2,-10,+1,+2 होते हैं। जो क्रमश:3s,3px,3py,3pz,3dxz,3dxy,3dyz,3dx2-y2,3dz2 को व्यक्त करते हैं।
चूँकि प्रत्येक कक्षक में +1/2 spin वाले एक-एक electron pair पाए जाते हैं, इसलिए इन 9 ऑर्बिटल में 18 इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं।
अतः M-शैल में अधिकतम 18 electron हो सकते हैं।
Pauli ka Apvarjan ka Sidhant/पाउली का अपवर्जन का नियम।
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क्वेश्चन:-6
Different Upkosh Me Electrons Distribute Karne Ke Rule
आंसर :-
Different Upkosh Me Electrons Distribute Karne Ke Rule।इस ब्लॉग में इलेक्ट्रॉन्स के विभिन्न उपकोष(upkosh) में भरने का नियम को एक चार्ट से समझाने की कोशिश करूँगा।electron s,p,d,f upkosh में एक नियम के अनुसार भरें जाते हैं।s upkosh में केवल एक ही ऑर्बिटल होता हैं। इसमें कुल दो electron ही भर सकते हैं।p upkosh में कुल 3 ऑर्बिटल होते हैं। इसमें कुल 6 electron फिल कर सकते हैं।d subshell में कुल 5 orbital होते हैं। इसमें कुल 10 electron fill कर सकते हैं।और लास्ट में f कक्षक में कुल 7 कक्षक होते हैं। इसमें कुल 14 electron भर सकते हैं।
Different Upkosh Me Electrons Distribute Karne Ke Rule
n | l | m | s | कक्षक का नाम | उपस्थित इलेक्ट्रान | इलेक्ट्रानो की कुल संख्या |
1 ( K-शैल) | 0 | 0 | +1/2 -1/2 | 1S | 2 | 2 |
2 ( L-शैल) | 0
| 0 | +1/2 -1/2 | 2S
| 2 | 8 |
1 | -1 0 +1 | +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 | 2p | 6 | ||
3 ( M-शैल) | 0 | 0 | +1/2 -1/2 | 3S
| 2 | 18 |
1 | -1 0 +1 | +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 | 3p | 6 | ||
2 | -2 -1 0 +1
+2 | +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 | 3d | 10 | ||
4 ( N-शैल) | 0 | 0 | +1/2 -1/2 | 4S
| 2 | 32 |
1 | -1 0 +1 | +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 | 4p | 6 | ||
2 | -2 -1 0 +1
+2 | +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 | 4d | 10 | ||
3 | -3 -2 -1 0 +1
+2 +3 | +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 +1/2 -1/2 | 4f | 14 |
क्वेश्चन:-7
Significance of Quantum Numbers in Hindi
आंसर :-
Significance of Quantum Numbers in Hindi
प्रमुख क्वांटम संख्याओं का महत्व क्या है?
अंक, जिन्हें प्रमुख क्वांटम संख्याएँ कहा जाता है, ऊर्जा के स्तर के साथ-साथ नाभिक से सापेक्ष दूरी को भी दर्शाते हैं।
Atom में किसी electron को complete रूप से express करने के लिए means उसकी position and energy को determine करने के लिए चार constants या integers का use किया जाता हैं, जिन्हें quantum number कहते हैं।
यहां चारो क्वांटम संख्या को निम्न प्रकार से विभाजित किया गया है।क्वांटम संख्या wikipedia in hindi
क्वांटम संख्या meaning in english:-To fully express an electron in an atom,
means to determine its position and energy,
four constants or integers are used,
which are called quantum numbers.
1. Principal Quantum number(n)
2. Azimuthal Quantum number(l)
3. Magnetic Quantum number(m)
4. Spin Quantum number(s)
Significance of Quantum Numbers in Hindi
(1) मुख्य क्वांटम संख्या/मुख्य क्वांटम संख्या definition in hindi/मुख्य क्वांटम संख्या meaning/मुख्य क्वांटम संख्या को स्पष्ट कीजिए/मुख्य क्वांटम संख्या क्या है/मुख्य क्वांटम संख्या की जानकारी/मुख्य क्वांटम संख्या की परिभाषा/मुख्य क्वांटम संख्या क्या होता है/मुख्य क्वांटम संख्या की विशेषताएं/मुख्य क्वांटम संख्या हिंदी में
इसे इंग्लिश में प्रिंसिपल क्वांटम नंबर कहते हैं इसे स्मॉल n के द्वारा denote किया जाता है।
यह किसी दी हुई ऑर्बिट के ENERGY LEVEL तथा नाभिक से उस ऑर्बिट की डिस्टेंस को शो करता है।
अर्थात इससे किसी दिए हुए इलेक्ट्रॉन की एनर्जी तथा न्यूक्लियस से डिस्टेंस denote होती है ।
यह मूल बोर मॉडल के मुख्य आर्बिट्स को दर्शाता है।
इसकी वैल्यू 1,2,3,4 आदि कोई भी integer हो सकता है।
इनका मान बढ़ने से इलेक्ट्रॉन की एनर्जी और उसके सेल्स की रेडियस बढ़ती है ।
क्वांटम संख्या के लिए आइकॉन:-
मुख्य क्वांटम संख्या in english:-quantum sankhya kise kahate hain
[It is called the principal quantum number in English and is denoted by small n.
It shows the ENERGY LEVEL of a given orbit and the distance of that orbit from the nucleus ie
it denotes the energy of a given electron and the distance from the nucleus.
It represents the main orbits of the original Bohr model,
its value can be any integer 1,2,3,4 etc.
Increasing their value increases the energy of the electron and the radius of its cells.]
अभी तक known एलिमेंट के लिए इनके वैल्यू 1,2,3,4,5,6,7 प्राप्त हुए हैं।
जिन्हें क्रमश K,L,M,N,O,P और Q से DENOTE करते हैं।
यदि किसी इलेक्ट्रान के लिए n=2 है तो इससे यह प्रतीत होता है यह इलेक्ट्रान दूसरी कक्षा में हैं ।
मुख्य क्वांटम संख्या उदाहरण/
n=1 का अर्थ हैं lowest level अर्थात K-शैल
n=2 का अर्थ हैं K-शैल से अगली energy level अर्थात L-शैल
n=3 का अर्थ हैं M-शैल
n=4 का अर्थ हैं N-शैल
किसी इलेक्ट्रॉन की प्रिंसिपल क्वांटम नंबर ज्ञात करने के लिए यह देखते हैं,
कि वह इलेक्ट्रॉन atom के किस शैल में उपस्थित है।
यदि M शैल में है तो उस इलेक्ट्रॉन की प्रिंसिपल क्वांटम नंबर तीन होगी n=3 ।
प्रिंसिपल क्वांटम नंबर को परमाणु के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास मैं upkosh के संकेत से पूर्व लिखा जाता है,
जैसे Na के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में subshell s,p आदि से पूर्व लिखे गए अंक 1,2,3 आदि प्रिंसिपल क्वांटम नंबर को दर्शाते हैं ।
1s2,2s2p6,3s1
n (प्रिंसिपल क्वांटम संख्या) का महत्व/क्वांटम संख्या का महत्व
- यह इलेक्ट्रॉन की न्यूक्लियस से एवरेज डिस्टेंस शो करता है मतलब यह है कि यह इलेक्ट्रॉन के क्लाउड के साइज को डिटरमाइंड करता है।
- एक इलेक्ट्रॉन युक्त एटम या आयन डिफरेंट सेल्स की रेडियस निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात कर सकते हैं:-
r = 0.529 n2/Z
- यह किसी आर्बिट में इलेक्ट्रॉन की एनर्जी डिटरमाइंड करता है।एटम के किसी सेल में उपस्थित इलेक्ट्रॉन की एनर्जी निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात करते हैं:-
En =-2 mZ2 e4/n2h2
Significance of Quantum Numbers in Hindi
उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि n का मान इनक्रीस होने से e की वैल्यू डिक्रीज होती है।
- यह मुख्य शैल में इलेक्ट्रॉनों की संख्या देता है।
- एक मुख्य सेल अथवा आर्बिट में अधिकतम 2n2 इलेक्ट्रॉन रह सकते हैं अतः यदि
n = 1 (K-shell) तो electrons की maximum number = 2 ×12 = 2
n = 2 (L-shell) तो electrons की maximum number = 2 × 22 = 8
n = 3 (M-shell) तो electrons की maximum number = 2 × 32 =18
n = 4 (N-shell) तो electrons की maximum number = 2 × 42 = 32
Azimuthal or subsidiary Quantum Number (दिगंशी क्वांटम)/अज़ीमुथाल क्वांटम नंबर/दिगंशी क्वांटम संख्या
इसे l से प्रदर्शित करते हैं तथा किसी इलेक्ट्रान के upkosh (sub energy level) को भी प्रकट करता है।
यह किसी मुख्य सेल(मुख्य उर्जा स्तर) से सम्बद्ध upkosh(sub energy level ) की संख्या को भी दर्शाता है।
l की वैल्यू n की वैल्यू पर डिपेंड करती है।
n के किसी मान के लिए l के मान 0 से (n – 1) तक होते हैं।
l के अधिक से अधिक 4 मान 0,1,2,3 होते हैं।
जो क्रमश s, p, d और f upkosh या sub energy level को प्रकट करते हैं।
जब n= 1 तो l की value= 0 से (1-1)=0(only एक upkosh,s)
जब n= 2 तो l की value= 0,1(दो upkosh-s & p)
जब n= 3 तो l की value= 0,1,2(three upkosh-s,p,d)
जब n= 4 तो l की value= 0.1,2,3,(four upkosh-s,p,d,f)
ऑर्बिटल | L का मान |
S | 0 |
P | 1 |
D | 2 |
F | 3 |
अत: इन VALUE से यह प्रतीत होता है कि पहले आर्बिट में one upkosh,
दूसरी में दो,
तीसरी में तीन
और चौथी में 4 upkosh होते हैं।
Significance of Quantum Numbers in Hindi
l के अधिक से अधिक चार मान हो सकते हैं इसलिए पांचवी कक्षा में 4 उपकोष हो सकते हैं।
यदि किसी subshell की दिगंशी क्वांटम संख्या दो है।
तो इसका तात्पर्य d upkosh या d sub energy level से होता हैं।
किसी एक upkosh को पूर्ण रूप से व्यक्त करने के लिए दो क्वांटम संख्याओ n तथा l की आवश्यकता पड़ती है।
जैसे p लिखने से केवल p upkosh प्रकट होती है।
जबकि 3p लिखने से निश्चित रूप से प्रकट होता है की यह तीसरी कक्षा की p upkosh है।
यह क्वांटम संख्या upkosh के आर्बिटल्स की आकृति को डिटरमाइंड करती है।
इस क्वांटम संख्या से nucleus के चारों ओर इलेक्ट्रॉनिक cloud का आकाशीय डिस्ट्रीब्यूशन तथा इलेक्ट्रॉन के कोणीय संवेग का ज्ञान होता है।
इसलिए इसे कभी-कभी कोणीय संवेग क्वांटम संख्या भी कहते हैं।
Mvr = h/2πl(l+1) = h/2π.n
वेब मैकेनिक के रूप में दिगंशी क्वांटम संख्या l वाले इलेक्ट्रान द्वारा घेरे गए आर्बिटल्स की आकृति गोलाकार,
डम्बल
या किसी अन्य प्रकार की होती है।
यदि l = 0 तब इसका तात्पर्य s upkoshसे होता है। जो कि स्फेरिकल होता है।
इसी प्रकार l=1 होने पर p upkoshहोता है जो कि डम्बल आकृति का होता है।
तथा l = २ होने पर d upkoshहोता है जो कि डबल डम्बल आकार का होता है।
l=३ होने पर f upkosh होता है जो कांप्लेक्स सेप का होता है।
डिफरेंट upkosh या sub energy level को show करने वाले अक्षर
s,p,d व f एटम स्पेक्टम में पाई जाने वाली विभिन्न रेखाओं को सूचित करने वाले शब्दों
s- sharp p-principal d-diffused और f- फंडामेंटल से लिए गए हैं।
किसी सेल के s p, d व f चारों upkosh से upkosh की energy सबसे कम
तथा f upkoshकी सबसे अधिक होती है।
अत: l का मान
( i) मुख्य shell में upkosh की संख्या,
(ii) किसी के electron काupkosh,
(iii) upkosh की shape तथा
(iv)upkosh में electrons की संख्या (4n+2 )determine करता हैं।
Significance of Quantum Numbers in Hindi
Principal quantum number(n) | Azimuthal quantum number (l) | Subshell | Electrons ki maximum number | |
Subshell name | Shape | |||
n = 1 | 0 | s | spherical | 2 |
n = 2 | 0 1 | S p | Spherical dumble | 2 6 |
n = 3 | 0 1 2 | S p d | Spherical Dumble Double dumble | 2 6 10 |
चुम्बकीय या दिशामन क्वांटम संख्या,m(magnetic quantum number)
इसे m से शो करते हैं.यह किसी upkosh(sub energy level) के electron cloud का विभिन्न field में orientation को व्यक्त करता हैं।इन विभिन्न orientations को ऑर्बिटल कहते हैं।
अत:यह किसी upkosh ( sub energy level)में present orbitals की संख्या एवं orientation शो करती हैं।
M के मान दिगंशी क्वांटम संख्या (l) पर depend करते हैं।
किसी l के लिए m के कुल मान -1 से 1 अर्थात -1,से 0 तथा 0 से 1 होते हैं जिसमे जीरो भी शामिल हैं।
अत: m=-1,0,+1
यदि l=0 तो m=0
,, l=1 तो m= -1,0,+1
,, l=2 तो m= -2,-1 0,+1,+2
इस प्रकार l के किसी मान के लिए m के कुल values की संख्या (2l+1) होती हैं।
अत: यदि l=2 तो m=-2,-1 0,+1,+2 मतलब d-subshell (l=2) में ऑर्बिटल की कुल संख्या 5 होगी।
जिनकी value क्रमश: -2,-1 0,+1,+2होंगी।
किसी भी atomic orbital के opposite spin के अधिक से अधिक 2 electron रह सकते हैं।
इस प्रकार से s,p,d,और f, upkosh में अधिकतम क्रमश: 2,6,10 व् 14 electron रह सकते हैं।
Subenergylevel | दिगंशी क्वांटम संख्या | चुम्बकीय क्वांटम संख्या | Orbitalकी कुल संख्या | Electrons की संख्या |
S | 0 | 0 | 1 | 2 |
P | 1 | -1,0,+1 | 3 | 6 |
D | 2 | -2,-1,0,+1,+2 | 5 | 10 |
F | 3 | -3,-2,-1,0,+1,+2,+3 | 7 | 14 |
M के मान की हेल्प से किसी subshell में orbitals की संख्या तथा उनका orientation ज्ञात किया जा सकता हैं।जैसे -जब l=1 ,तब m के तीन मान होंगे जिन्हें क्रमश: -1,0,+1 से व्यक्त करते हैं।
इस प्रकार से p-upkosh (l=1) में तीन ऑर्बिटल होते हैं जो magnetic field में भिन्न-भिन्न डायरेक्शन में मतलब x,y,z axis के प्रति orientated होते हैं।
इसलिए इन्हें क्रमश:px,py व् pzसे शो किया जाता हैं।
spin quantum number
इस quantum numbers को ‘s’ से denote करते हैं।यह किसी electron का उसके axis पर spin की डायरेक्शन(clockwise या anticlockwise) को प्रकट करता हैं।यह spin electron की energy पर effect डालता हैं।
नाभिक के चारों और किसी ऑर्बिट में घूमता हुआ electron अपने स्वयं के axis पर लट्टू की तरह घूमता रहता हैं।इस प्रोसेस को spin कहते हैं।
electron का spin दो डायरेक्शन दक्षिणावर्त(clockwise) तथा वामावर्त (anticlockwise) में ही possible हैं।electron के spin की दिशा को व्यक्त करने के लिए जिस quantum संख्या का प्रयोग होता हैं,जिसे spin quantum number कहते हैं।
किसी एक orbital में अधिक से अधिक दो electron रह सकते हैं।और spin भी दो टाइप की होती हैं।एक ही ऑर्बिटल में रहने वाले दो electrons के spin opposite डायरेक्शन में होते हैं।
इनकी value +1/2 और -1/2 होती हैं ।दक्षिणावर्त(clockwise) ->+1/2 ,वामावर्त (anticlockwise)->-1/2
क्वेश्चन:-8
Spin quantum number of cr24
आंसर :-
Spin quantum number of cr24.quantum number चार type के होते हैं।atom में किसी electron को complete रूप से express करने के लिए means उसकी position and energy को determine करने के लिए चार constants या integers का use किया जाता हैं, जिन्हें quantum number कहते हैं।
1. Principal Quantum number(n)
2. Azimuthal Quantum number(l)
3. Magnetic Quantum number(m)
4. Spin Quantum number(s)
Spin quantum number of cr24
chromium का electronic configuration
Cr= [Ar] 3d⁵ 4s¹
Cr की spin quantum number यदि last electron के लिए निकलना हो तो हमें 4s¹ से निकालना होता हैं
4s¹ की चारों quantum number इस प्रकार होंगे:-
n= 4
l=0
m=0
s= 1/2
Spin quantum number of cr24 s= +1/2 हैं
क्वेश्चन:-9
Prachin Bhartiya Rasayanik Taknik/प्राचीन भारतीय रासायनिक तकनीक
आंसर :-
Prachin Bhartiya Rasayanik Taknik/प्राचीन भारतीय रासायनिक तकनीक .ब्रह्मांड और विभिन्न वस्तुओं की संरचना का विश्लेषण करने का मानव प्रयास उतना ही पुराना है जितना कि सभ्यता। इसने बाहरी और आंतरिक बलों द्वारा प्रभावित संरचनागत परिवर्तनों का अध्ययन किया, और दो अलग-अलग पदार्थों को मिलाकर नए यौगिकों का निर्माण किया गया। इस ज्ञान का अनुप्रयोग मिट्टी के बर्तनों से लेकर चिकित्सा विज्ञान तक भिन्न होता है।
Prachin Bhartiya Rasayanik Taknik/प्राचीन भारतीय रासायनिक तकनीक
इस अवधि के साहित्यिक कार्यों और कीमिया, धातु विज्ञान, आतिशबाजी, कागज के काम आदि पर विभिन्न वैज्ञानिक ग्रंथों में साक्ष्य पाए जा सकते हैं। यह पत्र कालानुक्रमिक क्रम में सिंधु घाटी / हड़प्पा सभ्यता से शुरू होने वाले ऐसे साक्ष्यों को चार्ट करने का प्रयास करता है। सीखने के अन्य क्षेत्रों से संबंधित संस्कृत में विभिन्न कार्य भी इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि रसायन विज्ञान के बारे में ज्ञान प्राचीन भारत में प्रचलित था।
वात्स्यायन के कामसूत्र में वर्णित 64 कलाओं और विज्ञानों में सुवर्ण रत्न परीक्षा (सोने और रत्नों की परीक्षा), धातु वड़ा (रसायन विज्ञान और धातु विज्ञान), और मणिरगकारजनम (खानों और खदानों का ज्ञान, और रत्नों का रंग और रंग) का उल्लेख है। गहने)। इस पत्र में प्रागैतिहासिक काल के विभिन्न ग्रंथों में पाए गए साक्ष्यों और उल्लेखों को कालानुक्रमिक क्रम में दर्शाने का प्रयास किया गया है।
सिंधु घाटी और हड़प्पा सभ्यता (प्रागैतिहासिक काल से 1500 ईसा पूर्व तक)
पुरातात्विक साक्ष्यों से संकेत मिलता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान रसायन शास्त्र कई भौतिक प्रथाओं का आधार था। उनमें से महत्वपूर्ण मिट्टी के बर्तनों का भारतीय रसायन विज्ञान के इतिहास में एक प्रमुख स्थान है। वे मटके मिट्टी को आग में जलाने से कठोर हो गए; इस अवधि के दौरान लंबे समय तक हीटिंग, पिघलने और वाष्पीकरण जैसी खनिजों से जुड़ी विभिन्न प्रक्रियाएं विकसित की गईं।
इनके साथ-साथ मोल्डिंग, रंगाई आदि की प्रक्रियाओं का भी विकास किया गया। बर्तनों को रंगने में लोहे के मिश्रण का प्रयोग किया जाता था। मैंगनीज के साथ मिश्रित हेमराइट्स के साथ पेंटिंग की गई थी। मिट्टी के बर्तनों के उत्पादन में मानकीकरण भी उल्लेखनीय है।
किण्वन, कांच के निर्माण आदि का ज्ञान भी उल्लेख के योग्य है।
यह संभव है कि कांस्य, तांबा, सीसा, चांदी, सोना और इलेक्ट्रम जैसी धातुएं हड़प के लोगों को एक सभ्यता के बारे में जानती थीं।
वैदिक काल (बी सी 1500 – 1000)
ऋग्वेद में सोना, तांबा, चांदी और कांस्य जैसी धातुओं का उल्लेख है। एक सोने की बाली और हार का उल्लेख इस प्रकार है: हिरण्यकर्णम मणिग्रीवम्
शुक्ल यजुर्वेद टिन और सीसा की भी बात करता है: हिरण्यं चा मेयाशमे सीसम चमे थ्रपुस्चमे स्यामं चा में लोहाम चा में
रसायनज्ञों का मत है कि इन सभी धातुओं को केवल जटिल रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है: इन धातुओं में से प्रत्येक में अलग-अलग भौतिक और रासायनिक विशेषताएं होती हैं और उन्हें अपने अयस्कों से बाहर निकालने के लिए विभिन्न प्रकार की निष्कर्षण प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है।
अयस्क पर कोई भी अतिरिक्त ज्ञान धातुओं के लिए ऐसे नाम नहीं दे सकता जब तक कि उनका उत्पादन न किया गया हो।
Prachin Bhartiya Rasayanik Taknik/प्राचीन भारतीय रासायनिक तकनीक
अथर्ववेद ने सार्वभौमिक शक्ति के रंग की तुलना धातुओं से की है: उनके मांस में श्याम (लोहा) का रंग है, रक्त में लोहा (तांबा) का रंग है, और पूरी तरह से उनके पास टिन का रंग है और उनमें सीसे की गंध है।
छांदोग्य उपनिषद में प्रस्तुत धातुकर्म मिश्र धातु की तकनीक इस प्रकार है: एक बोरेक्स की मदद से सोना, सोने के साथ चांदी, चांदी के साथ टिन, टिन के साथ सीसा, सीसा की मदद से तांबा, और तांबे और चमड़े के साथ लकड़ी में शामिल होगा। एन गोपालकृष्णन के अनुसार, इस तकनीक का उपयोग अब तक मिश्रधातु बनने वाली धातुओं के गलनांक को कम करने के लिए किया जाता है।6
तथ्य यह है कि ऋग्वैदिक लोग जानते थे कि पेय का किण्वन सोमरस की स्तुति करने वाले भजनों से स्पष्ट होता है। इसकी स्तुति करने वाले लगभग 120 सूक्त हैं।
उत्तर वैदिक काल (600 ईसा पूर्व – 800 ईस्वी)
यह काल भारतीय रसायन विज्ञान का उत्कर्ष काल था। दर्शन के विभिन्न स्कूल, विशेष रूप से सांख्य, न्याय और वैशेषिका, कौटिल्य के अर्थशास्त्र, वराहमिहिर की बृहत संहिता और चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे आयुर्वेदिक ग्रंथ इस अवधि के दौरान भारतीय रसायन विज्ञान की उन्नत प्रथाओं के बारे में बहुत सारे सबूत प्रदान करते हैं।
रसायन विज्ञान के भाग – भारत
कार्बनिक और अकार्बनिक रसायन विज्ञान
भौतिकी में परमाणु और परमाणु क्रमपरिवर्तन और संयोजन की अवधारणाओं के विकास के समानांतर रसायन विज्ञान के क्षेत्र में भी विचारों का समान विकास हुआ था। हालांकि रसायन शास्त्र की प्रकृति को देखते हुए, विचार एक अमूर्त स्तर तक ही सीमित नहीं रहे। रसायन विज्ञान के बारे में भारतीय विचार प्रयोग द्वारा विकसित हुए। रसायन विज्ञान के सिद्धांत के अनुप्रयोग के क्षेत्र थे: धातुओं का गलाना, इत्र और सुगंधित मलहम का आसवन, रंजक और रंजक बनाना, चीनी का निष्कर्षण आदि।
संयोग से, रसायन विज्ञान की अनुभवजन्य प्रकृति भी उस शब्द में परिलक्षित होती है जिसका उपयोग हम पदार्थों के लिए करते हैं अर्थात पदार्थ जो दो शब्दों पाद का अर्थ है ‘चरण’ और अर्थ जिसका अर्थ है ‘अर्थ’। इस प्रकार पदार्थ शब्द का शाब्दिक रूप से अनुवाद किया जा सकता है जिसका अर्थ है ‘चरणों में अर्थ’। शायद, यह इस तथ्य को दर्शाता है कि रसायन विज्ञान में, प्रयोग और दैनिक गतिविधियों की वास्तविक प्रक्रिया के माध्यम से कदम दर कदम ज्ञान अर्जित किया गया था।
प्राचीन भारत में रसायन को रसायन कहा जाता था
हालाँकि भारतीयों ने धातुओं को गलाने के विचार को बाहरी स्रोत से उधार लिया होगा, ऐसा लगता है कि उन्होंने लगभग 1500 ईसा पूर्व से युद्ध में धातुओं का इस्तेमाल किया था, जब कहा जाता है कि आर्यों ने सिंधु घाटी के शहरों पर आक्रमण किया था। भारतीय सैनिकों द्वारा धातुओं के उपयोग का अगला निश्चित संदर्भ यूनानियों द्वारा है।
ग्रीक इतिहासकार हेरोडोटस ने ५वीं शताब्दी में देखा है कि “फारसी सेना में भारतीयों ने लोहे के तीरों का इस्तेमाल किया”। कथित तौर पर भारतीय स्टील और लोहे का इस्तेमाल रोमनों द्वारा कवच और कटलरी के निर्माण के लिए किया जा रहा था। लेकिन इन संदर्भों के अलावा, यह भारत में ही है कि हमें वास्तविक वस्तुएं मिलती हैं जो गलाने की तकनीक की प्रगति को दर्शाती हैं।
दार्शनिक प्रणाली
दार्शनिक प्रणालियों ने, ब्रह्मांड और उसमें मौजूद वस्तुओं के विश्लेषण के हिस्से के रूप में, रसायन विज्ञान से संबंधित कुछ सिद्धांतों को भी विकसित किया। भौतिक ब्रह्मांड के आधार के रूप में पांच तत्वों की अवधारणा को आम तौर पर अधिकांश दार्शनिक प्रणालियों द्वारा स्वीकार किया गया था।
यह अवधारणा पदार्थों के उनके गुणों और एकत्रीकरण की अवस्था के आधार पर वर्गीकरण की ओर इशारा करती है। पृथ्वी, जल और वायु को क्रमशः ठोस, तरल और गैसीय अवस्थाओं में रसायन विज्ञान के सभी तत्वों के रूप में देखा जा सकता है।
दर्शन की सांख्य प्रणाली का विचार के इतिहास में एक अनूठा स्थान है क्योंकि यह ऊर्जा के संरक्षण, परिवर्तन और अपव्यय के आधार पर ब्रह्मांडीय विकास की प्रक्रिया के शुरुआती ठोस और व्यापक खाते का प्रतीक है।
न्याय और वैशेषिक विद्यालयों (ईसा पूर्व 200) ने परमाणुवाद के परमानुवाद के सिद्धांत को यह बनाए रखते हुए तैयार किया कि पदार्थों की मूल संरचना परमानु-एस या परमाणु थे।
Prachin Bhartiya Rasayanik Taknik/प्राचीन भारतीय रासायनिक तकनीक
परमानु-वादिनों ने पदार्थ के संविधान और गुणों की जांच की। वैशेषिक दर्शन के प्रतिपादक कणाद परमाणुओं की अनंतता को बनाए रखते हैं। वह उनके अस्तित्व और एकत्रीकरण की भी व्याख्या करता है। न्याय पर एक ग्रंथ तारकसंग्रहदीपिका के अनुसार, सूर्य की किरण में दिखाई देने वाला कण सबसे छोटी बोधगम्य मात्रा है।
एक पदार्थ और एक प्रभाव होने के नाते, यह उस चीज से बना होना चाहिए जो अपने से कम है, क्योंकि जिस पदार्थ का परिमाण होता है उसका घटक भाग छोटे से बना होना चाहिए, और वह छोटी चीज एक परमाणु है। यह सरल और असम्बद्ध है, अन्यथा श्रृंखला अंतहीन होगी। परमाणु को सूर्य की किरण में अधिक दृश्यमान का छठा भाग माना जाता है।
दो सांसारिक परमाणु पृथ्वी के दोहरे परमाणु का निर्माण करते हैं और तीन द्विआधारी परमाणुओं के मिलन से; एक तृतीयक परमाणु उत्पन्न होता है और चार ट्रिपल परमाणुओं, एक चतुर्धातुक परमाणु और इसी तरह पृथ्वी के सबसे बड़े द्रव्यमान में बनता है।
प्रभाव से संबंधित गुण प्राथमिक कण के अभिन्न अंग में निहित हैं। पदार्थों का विघटन उलटा होता है। जब किसी पदार्थ में कोई क्रिया वेग के साथ उपस्थित दाब या साधारण दाब द्वारा प्रेरित होती है, तो विच्छेदन होता है। और फिर उन सदस्यों से युक्त अभिन्न पदार्थ अपने भागों में विलीन हो जाता है और नष्ट हो जाता है, क्योंकि यह समग्र रूप से अस्तित्व में नहीं रहता है।
Prachin Bhartiya Rasayanik Taknik/प्राचीन भारतीय रासायनिक तकनीक
कणाद ने पदार्थों के गुणों का भी विस्तार से वर्णन किया है। पी सी रे बताते हैं कि प्रकाश की परिभाषा गर्म पदार्थ के रूप में महसूस करने के लिए (तारकसंग्रह) कुछ उल्लेखनीय है, जिसका तात्पर्य यह है कि गर्मी और प्रकाश को एक पदार्थ के रूप में पहचाना जाता है।
वात्स्यायन (चौथी शताब्दी ईस्वी) के अनुसार, रासायनिक परिवर्तन बाहरी ऊष्मा या आंतरिक ऊष्मा के अनुप्रयोग से हो सकता है। किरणावली में, उदयन (11वीं शताब्दी ईस्वी) ने सौर ताप को पृथ्वी के रासायनिक परिवर्तनों के लिए आवश्यक सभी ऊष्मा का अंतिम स्रोत माना।
उन्होंने सोचा कि सौर ताप घास के रंग में परिवर्तन, आमों के पकने, गंध, स्वाद और रंग में परिवर्तन का कारण है। धातुओं (सूर्य पाक) में जंग लगना और भोजन का रक्त में परिवर्तन भी इसके कारण हुआ। ये सभी ऊष्मा द्वारा रासायनिक परिवर्तन के उदाहरण हैं।
क्वेश्चन:-10
Ancient Indian Scientist का Chemistry में योगदान
आंसर :-
Ancient Indian Scientist का Chemistry में योगदान.इस ब्लॉग में हम प्राचीन भारत में रसायन शास्त्र वैज्ञानिकों के हेल्प के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे chemistry का सम्बन्ध धातु विज्ञानं के साथ-साथ मेडिकल साइंस में भी हैं.
Ancient Indian Scientist का Chemistry में योगदान
पूर्व काल में अनेक केमिस्ट हए है,उनमे से कुछ नाम एंड उनके द्वारा लिखे ग्रन्थ इस प्रकार हैं :-
नागार्जुन
वह मध्य प्रदेश के बालूका के गैर-वर्णित गांव में पैदा हुए विज्ञान के एक असाधारण जादूगर थे। बारह वर्षों तक उनके समर्पित शोध ने पहली खोजों और आविष्कारों का निर्माण किया
रसायन विज्ञान और धातु विज्ञान के संकाय। “रस रत्नाकर,” “रशरुदया” और “रसेंद्रमंगल” जैसी पाठ्य कृतियाँ रसायन विज्ञान के विज्ञान में उनके प्रसिद्ध योगदान हैं।
जहां इंग्लैंड के मध्ययुगीन रसायनज्ञ विफल हो गए, वहीं नागार्जुन ने आधार धातुओं को सोने में बदलने की कीमिया की खोज की थी। “आरोग्यमंजरी” और “योगसार” जैसी चिकित्सा पुस्तकों के लेखक के रूप में, उन्होंने उपचारात्मक चिकित्सा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। वजह से
उनकी गहन विद्वता और बहुमुखी ज्ञान, उन्हें नालंदा के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में नियुक्त किया गया था। नागार्जुन की मील का पत्थर खोजें प्रभावित करती हैं और चकित करती हैं
आचार्य चरकी
(600 ईसा पूर्व)
चिकित्सा के जनक
आचार्य चरक को चिकित्सा के पिता के रूप में ताज पहनाया गया है। उनकी प्रसिद्ध कृति, “चरक संहिता”, को आयुर्वेद का विश्वकोश माना जाता है। उनके सिद्धांत, निदान और उपचार एक-दो सहस्राब्दियों के बाद भी अपनी शक्ति और सच्चाई को बरकरार रखते हैं।
जब शरीर रचना विज्ञान यूरोप में विभिन्न सिद्धांतों के साथ भ्रमित था, आचार्य चरक ने अपनी सहज प्रतिभा के माध्यम से खुलासा किया और मानव शरीर रचना विज्ञान, भ्रूणविज्ञान, औषध विज्ञान, रक्त परिसंचरण, और मधुमेह, तपेदिक, हृदय रोग, आदि जैसे रोगों पर तथ्यों की जांच की। चरक संहिता,” उन्होंने 100,000 जड़ी-बूटियों के औषधीय गुणों और कार्यों का वर्णन किया है।
उन्होंने मन और शरीर पर आहार और गतिविधि के प्रभाव पर जोर दिया है। उन्होंने सिद्ध किया है कि आध्यात्मिकता और शारीरिक स्वास्थ्य के संबंध ने नैदानिक
उन्होंने हिप्पोक्रेटिक शपथ से दो शताब्दी पहले चिकित्सा चिकित्सकों के लिए एक नैतिक चार्टर भी निर्धारित किया है। आचार्य चरक ने अपनी प्रतिभा और अंतर्ज्ञान के माध्यम से आयुर्वेद में ऐतिहासिक योगदान दिया।
वह हमेशा के लिए इतिहास के इतिहास में सबसे महान और महान आयरिश वैज्ञानिकों में से एक के रूप में अंकित रहता है।
आचार्य सुश्रुत:
(600 ईसा पूर्व)
प्लास्टिक सर्जरी के जनक
एक प्रतिभाशाली व्यक्ति जिसे चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में चमक के साथ पहचाना गया है। ऋषि विश्वामित्र के घर जन्मे, आचार्य सुद्रुत ने “सुश्रुत संहिता, शल्य चिकित्सा का एक अनूठा विश्वकोश” में पहली बार शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं का विवरण दिया है।
उन्हें प्लास्टिक सर्जरी और संज्ञाहरण के विज्ञान के पिता के रूप में सम्मानित किया जाता है। जब यूरोप में शल्य चिकित्सा अपनी प्रारंभिक अवस्था में थी, सुश्रुत राइनोप्लास्टी (एक क्षतिग्रस्त नाक की बहाली) और अन्य चुनौतीपूर्ण ऑपरेशन कर रहा था।
“सुश्रुत संहिता” में, वह बारह प्रकार के फ्रैक्चर और छह प्रकार के अव्यवस्थाओं के लिए उपचार निर्धारित करता है। मानव भ्रूणविज्ञान पर उनका विवरण बस अद्भुत है।
सुश्रुत ने 125 प्रकार के उपयोग किए स्केलपेल, लैंसेट, सुई, कैथर, और रेक्टल स्पेकुलम सहित शल्य चिकित्सा उपकरण; ज्यादातर जानवरों और पक्षियों के जबड़े से डिजाइन किए गए हैं।
उन्होंने कई सिलाई विधियों का भी वर्णन किया है; घोड़े के बालों का उपयोग धागे और छाल के तंतुओं के रूप में किया जाता है। में ” सुश्रुत संहिता,” और छाल के रेशे। “सुश्रुत संहिता” में, उन्होंने 300 प्रकार के ऑपरेशनों का विवरण दिया है।
प्राचीन भारतीय विच्छेदन, सीज़ेरियन और कपाल सर्जरी में अग्रणी थे। आचार या सुश्रुत चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक विशालकाय व्यक्ति थे।
वराह मिहिर
(499-587 सीई)
प्रख्यात ज्योतिषी और खगोलशास्त्री
प्रसिद्ध ज्योतिषी और खगोलशास्त्री जिन्हें अवंती (उज्जैन) में राजा विक्रमादित्य के दरबार में नौ रत्नों में से एक विशेष अलंकरण और दर्जा से सम्मानित किया गया था।
वराहमिहिर की पुस्तक “पंचसिद्धांत” खगोल विज्ञान के क्षेत्र में एक प्रमुख स्थान रखती है। उन्होंने नोट किया कि चंद्रमा और ग्रह अपने स्वयं के प्रकाश के कारण नहीं बल्कि सूर्य के प्रकाश के कारण चमकदार हैं।
“बृहद संहिता” और “बृहद जातक” में उन्होंने भूगोल, नक्षत्र, विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और पशु विज्ञान के क्षेत्र में अपनी खोजों का खुलासा किया है।
वानस्पतिक विज्ञान पर अपने ग्रंथ में, वरमिहिर ने पौधों और पेड़ों से पीड़ित विभिन्न रोगों के इलाज को प्रस्तुत किया है। ऋषि-वैज्ञानिक ज्योतिष और खगोल विज्ञान के विज्ञान में अपने अद्वितीय योगदान के माध्यम से जीवित रहते हैं।
आचार्य पतंजलि
(200 ईसा पूर्व)
योग के पिता
योग विज्ञान दुनिया के लिए भारत के कई अनूठे योगदानों में से एक है। यह योगाभ्यास के माध्यम से परम वास्तविकता की खोज और एहसास करना चाहता है। आचार्य पतंजलि, संस्थापक, उत्तर प्रदेश के गोंडा (गणारा) जिले के रहने वाले थे।
उन्होंने शरीर, मन और आत्मा को नियंत्रित करने के साधन के रूप में प्राण (जीवन श्वास) के नियंत्रण को निर्धारित किया। यह बाद में अच्छे स्वास्थ्य और आंतरिक खुशी के साथ पुरस्कृत करता है।
आचार्य पतंजलि के 84 योग आसन श्वसन, संचार, तंत्रिका, पाचन और अंतःस्रावी तंत्र और शरीर के कई अन्य अंगों की दक्षता को प्रभावी ढंग से बढ़ाते हैं।
योग के आठ अंग हैं जहां आचार्य पतंजलि समाधि में भगवान के परम आनंद की प्राप्ति को यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान और धारणा के माध्यम से दिखाते हैं। योग विज्ञान ने अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण और लाभों के कारण लोकप्रियता हासिल की है।
योग भारतीय दार्शनिक प्रणाली में छह दर्शनों में से एक के रूप में सम्मानित स्थान रखता है। आचार्य पतंजलि को हमेशा याद किया जाएगा और आत्म-अनुशासन, खुशी और आत्म-साक्षात्कार के विज्ञान में अग्रणी के रूप में सम्मानित किया जाएगा।
रंग/रंगद्रव्य रंजक-Colour/Pigment-Dye
रंग/रंगद्रव्य रंजक-Colour/Pigment-Dye.18th सदी में India cloth industry में अग्रणी हुआ करता था सूती,ऊनि ,रेशमी और जूट से निर्मित रंगीन कपडे सारे विश्व का ध्यान india की और attract करते थे.अजंता के भित्ति डायग्राम का रंग कई वर्षों से जैसा के तेसा बना हुआ हैं.
रंग/रंगद्रव्य रंजक-Colour/Pigment-Dye
खनिजों से प्रामंप्त होने वाले,वनस्पति एवं प्राणी जगत से प्राप्त होने 100 से अधिक रंजको का उल्लेख प्राचीन साहित्य में हैं.मंजिष्ठा की जड़ से तैयार किया गया लाल रजक टर्की अथवा अलिज़रिन के समान होता हैं.
वराहमिहिर की वृहत संहिता में फिटकरी तथा कपीस (फेरस सल्फेट) रंग बंधकों (mordant)के रूप में प्रयुक्त होते थे जो कपडे पर पक्का रंग देते हैं.
फिटकरी को “मंजिष्ठा राग बंधिनी” कहा जाता था.कीड़ों से उत्पन्न लाख से भी 12% लाल रंजक तथा शेष रेजिन होता था.modern रंजक विज्ञानं में प्रयुक्त होने वाला ‘लेक’ शब्द शायद लाख से ही आया हैं.अजंता के भित्ति चित्रों में inorganic रंजक द्रव्य लाल और पीले ओकर ,सिन्नाबर ,रेड लेड ,लिथार्ज,मृतिका खनिज और कार्बन ब्लैक का उपयोग किया गया था.
नागार्जुन के रस रत्नाकर में ताल पत्र एवं भोज पत्र पर लिखने के लिए ‘अमिट स्याई’ का वर्णन हैं.इसे बनाने के लिए तीन प्रकार के हरड(एक्लिप्ता,अल्बा,बर्बेरिस),अंकन नठ,ओलीइंडर,बाबगमऔर लैम्प की कालिख का उपयोग होता था.
इसके अलावा पूर्वकाल में फलों,गिरियों,छालो,फूलों और पत्तों से निर्मित 20 से अधिक रंजकों का विवरण मिलाता हैं.
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