रंग/रंगद्रव्य रंजक-Colour/Pigment-Dye
रंग/रंगद्रव्य रंजक-Colour/Pigment-Dye.18th सदी में India cloth industry में अग्रणी हुआ करता था सूती,ऊनि ,रेशमी और जूट से निर्मित रंगीन कपडे सारे विश्व का ध्यान india की और attract करते थे.अजंता के भित्ति डायग्राम का रंग कई वर्षों से जैसा के तेसा बना हुआ हैं.
रंग/रंगद्रव्य रंजक-Colour/Pigment-Dye
खनिजों से प्रामंप्त होने वाले,वनस्पति एवं प्राणी जगत से प्राप्त होने 100 से अधिक रंजको का उल्लेख प्राचीन साहित्य में हैं.मंजिष्ठा की जड़ से तैयार किया गया लाल रजक टर्की अथवा अलिज़रिन के समान होता हैं.वराहमिहिर की वृहत संहिता में फिटकरी तथा कपीस (फेरस सल्फेट) रंग बंधकों (mordant)के रूप में प्रयुक्त होते थे जो कपडे पर पक्का रंग देते हैं.
फिटकरी को “मंजिष्ठा राग बंधिनी” कहा जाता था.कीड़ों से उत्पन्न लाख से भी 12% लाल रंजक तथा शेष रेजिन होता था.modern रंजक विज्ञानं में प्रयुक्त होने वाला ‘लेक’ शब्द शायद लाख से ही आया हैं.अजंता के भित्ति चित्रों में inorganic रंजक द्रव्य लाल और पीले ओकर ,सिन्नाबर ,रेड लेड ,लिथार्ज,मृतिका खनिज और कार्बन ब्लैक का उपयोग किया गया था.
नागार्जुन के रस रत्नाकर में ताल पत्र एवं भोज पत्र पर लिखने के लिए ‘अमिट स्याई’ का वर्णन हैं.इसे बनाने के लिए तीन प्रकार के हरड(एक्लिप्ता,अल्बा,बर्बेरिस),अंकन नठ,ओलीइंडर,बाबगमऔर लैम्प की कालिख का उपयोग होता था.
इसके अलावा पूर्वकाल में फलों,गिरियों,छालो,फूलों और पत्तों से निर्मित 20 से अधिक रंजकों का विवरण मिलाता हैं.
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